यह ब्लॉग खोजें

17 जून, 2010

"माँ!" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

imageमाता के उपकार बहुत,
वो भाषा हमें बताती है!
उँगली पकड़ हमारी माता,
चलना हमें सिखाती है!!


दुनिया में अस्तित्व हमारा,
माँ के ही तो कारण है,
खुद गीले में सोती वो,
सूखे में हमें सुलाती है!
उँगली पकड़ हमारी……..


देश-काल चाहे जो भी हो,
माँ ममता की मूरत है,
धोकर वो मल-मूत्र हमारा,
पावन हमें बनाती है!
उँगली पकड़ हमारी……..


पुत्र कुपुत्र भले बन जायें,
होती नही कुमाता माँ,
अपने हिस्से की रोटी,
पुत्रों को सदा खिलाती  है!
उँगली पकड़ हमारी……..


ऋण नही कभी चुका सकता,
कोई भी जननी माता का,
माँ का आदर करो सदा,
यह रचना यही सिखाती है!
उँगली पकड़ हमारी……..

9 टिप्‍पणियां:

  1. बच्चो के लिए संदेशप्रद कविता ....आभार

    जवाब देंहटाएं
  2. सच्ची ,सीधी संदेश देती रचना ।

    जवाब देंहटाएं
  3. दुनिया में अस्तित्व हमारा,
    माँ के ही तो कारण है,
    खुद गीले में सोती वो,
    सूखे में हमें सुलाती है!
    उँगली पकड़ हमारी……..


    माँ से बढ़ कर दुनिया में और कुछ है ही नही..सुंदर कविता..बधाई शास्त्री जी

    जवाब देंहटाएं
  4. यही खासियत रूपचंद की
    हृदय विपुल भण्डार छंद की
    सरल शब्द में उनकी रचना
    रोज नया सिखलाती है

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  5. एक सार्थक संदेश देती रचना …………………बेहद सुन्दर भावों से भरी कविता।

    जवाब देंहटाएं
  6. माँ से बढ़ कर दुनिया में और कुछ है ही नही,
    एक सार्थक संदेश देती रचना

    जवाब देंहटाएं
  7. माँ के ऊपर बहुत सुन्दर व प्यारी कविता..बधाई.
    ____________________________
    'पाखी की दुनिया' में 'पाखी का लैपटॉप' !

    जवाब देंहटाएं

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथासम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।