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25 जून, 2010

“भोजन सदा खिलाना!” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

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रबड़ प्लाण्ट का वृक्ष लगा है,
मेरे घर के आगे!
पत्ते खाने बकरे-बकरी,
आये भागे-भागे!

हुए बहुत मायूस,
धरा पर पर पत्ता कोई न पाया!
इन्हे उदास देखकर मैंने,
अपना हाथ बढ़ाया!!


झटपट पत्ता तोड़ पेड़ से,
हाथों में लहराया!
इन भोले-भाले जीवों का,
मन था अब ललचाया!!
IMG_1515आँखों में आशा लेकर,
सब मेरे पास चले आये!

चक-उचककर बड़े चाव से
सबने पत्ते खाये!!
IMG_1519 दुनिया के जीवों का,
यदि तुम प्यार चाहते पाना!
भूखों को सच्चे मन से
तुम भोजन सदा खिलाना!!



अब इस बाल-कविता को सुनिए-
अर्चना चावजी के स्वर में-




8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर संदेश देता बाल गीत्।

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  2. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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  3. सुन्दर और बढ़िया सन्देश देती हुई उम्दा रचना! तस्वीरें बहुत अच्छी लगी!

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  4. good message , we should take care the feelings of our Pet. they are a Human being. i support vegetarianism
    and request other bloggers to be a vegetarian.

    thnx to mayank Uncle for posting a nice poem

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  5. भूखों को तुम सच्चे मन से,
    भोजन सदा खिलाना....

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  6. हा हा हा
    बेहद रोचक, मजेदार और मानवता से भरा हुआ.

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  7. सुन्दर सन्देश देती रचना...चित्र भी बहुत अच्छे हैं

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  8. बहुत सुन्दर बाल कविता..मजेदार.

    _______________________
    'पाखी की दुनिया' में 'कीचड़ फेंकने वाले ज्वालामुखी' जरुर देखें !

    जवाब देंहटाएं

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