“सुनिए-मेरा टेलीफोन" होता कभी नही है मौन! यह है मेरा टेलीफोन!! इसमें जब घण्टी आती है, लाल रौशनी जल जाती है, हाथों में तब इसे उठाकर, बड़े मजे से कान लगा कर, मीठी भाषा में कहती हूँ, हैल्लो बोल रहे हैं कौन! यह है मेरा टेलीफोन!! कभी-कभी दादी-दादा से, और कभी नानी-नाना से, थोड़ी नही ढेर सारी सी, करते बातें हम प्यारी सी, लेकिन तभी हमारी मम्मी, देतीं काट हमारा फोन! यह है मेरा टेलीफोन!! (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक") |
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19 जुलाई, 2010
"मेरा टेलीफोन : स्वर-अर्चना चावजी का"
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कविता के साथ स्वर भी सुन्दर
जवाब देंहटाएंहा हा! मस्त!!
जवाब देंहटाएंहा हा बहुत मस्त लिखा और गाया
जवाब देंहटाएंसुन्दर बाल कविता
जवाब देंहटाएंखूबसूरत रचना ..बधाई .
जवाब देंहटाएं********************
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सुन्दर बाल कविता.....बधाई ......
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