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08 जुलाई, 2010

“यह है मेरा टेलीफोन” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”

“टेलीफोन”
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होता कभी नही है मौन!
यह है मेरा टेलीफोन!!


इसमें जब घण्टी आती है,
लाल रौशनी जल जाती है,


हाथों में तब इसे उठाकर,
बड़े मजे से कान लगा कर,


मीठी भाषा में कहती हूँ,
हैल्लो बोल रहे हैं कौन!
यह है मेरा टेलीफोन!!


कभी-कभी दादी-दादा से,
और कभी नानी-नाना से,


थोड़ी नही ढेर सारी सी,
करते बातें हम प्यारी सी,


लेकिन तभी हमारी मम्मी,
देतीं काट हमारा फोन!
यह है मेरा टेलीफोन!!

4 टिप्‍पणियां:

  1. बडी ही प्यारी रचना है…………बस मम्मी को फोन काटना नही चाहिये।

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  2. ह्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म मम्मी से मना करना पडेगा.........आखिर मेरा टेलीफ़ोन है.......

    जवाब देंहटाएं
  3. wow.....टेलीफ़ोन हि मेरा दोसत है जो दादा-दादि और नाना-नानि से आज भि जोडकर रख है!

    ______________

    My new post: fathers day card and cow boy

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