“नाच रहा जंगल में मोर” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
देख-देख मन हुआ विभोर। नाच रहा जंगल में मोर।।चंचल-चपला चमक रही है, बादल गरज रहा घनघोर। नाच रहा जंगल में मोर।।रूप सलोना देख मोरनी, के मन में है हर्ष-हिलोर। नाच रहा जंगल में मोर।। नीलकण्ठ का नृत्य हो रहा, पुरवा मचा रही है शोर। नाच रहा जंगल में मोर।। रंग-बिरंगा और मनभावन, कितना अच्छा लगता मोर। नाच रहा जंगल में मोर।।
मनभावन कविता...आज कल के सावन में मोर जगह जगह दिख जाते है.
आप की रचना 16 जुलाई के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपने सुझाव देकर हमें प्रोत्साहित करें. http://charchamanch.blogspot.com आभार अनामिका
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मनभावन कविता...आज कल के सावन में मोर जगह जगह दिख जाते है.
जवाब देंहटाएंआप की रचना 16 जुलाई के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपने सुझाव देकर हमें प्रोत्साहित करें.
http://charchamanch.blogspot.com
आभार
अनामिका
ओह बडी प्यारी रचना है साथ ही तस्वीरें भी मनभावन हैं।
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कविता है तस्वीरों ने तो जान डाल दी है
जवाब देंहटाएंआशा
बहुत सुन्दर रचना...चित्र देख कर दृश्य साकार हो गया ...
जवाब देंहटाएंअति उत्तम
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