रिम-झिम, रिम-झिम वर्षा आई। शीतल पवन चली सुखदायी। रिम-झिम, रिम-झिम वर्षा आई। भीग रहे हैं पेड़ों के तन, भीग रहे हैं आँगन उपवन, हरियाली सबके मन भाई। रिम-झिम, रिम-झिम वर्षा आई।। मेंढक टर्र-टर्र चिल्लाते, झींगुर मस्ती में हैं गाते, आमों की बहार ले आई। रिम-झिम, रिम-झिम वर्षा आई।। आसमान में बिजली कड़की, डर से सहमें लडका-लड़की, बन्दर जी की शामत आई। रिम-झिम, रिम-झिम वर्षा आई।। कहीं छाँव है, कहीं धूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, धरती ने है प्यास बुझाई। रिम-झिम, रिम-झिम वर्षा आई।। विद्यालय भी तो जाना है, होम-वर्क भी जँचवाना है, प्राची छाता लेकर आयी। रिम-झिम, रिम-झिम वर्षा आई।। |
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17 जुलाई, 2010
‘‘... .. .वर्षा आई’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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सुन्दर चित्रों के साथ बारिश का आनंद और प्यारा इन्द्रधनुष मन को लुभा गया ...अनुपम रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर वर्षा गीत है………………मगर यहाँ तो अभी भी तरस रहे हैं।
जवाब देंहटाएंवाह !! बारिश का आनंद ही कुछ अलग है...
जवाब देंहटाएंमैं भी भीग गई इस बारिश में...
जवाब देंहटाएं___________________
'पाखी की दुनिया' में समीर अंकल के 'प्यारे-प्यारे पंछी' चूं-चूं कर रहे हैं...
सुहानी फुहारें लेकिन हमारे यहां तो वर्षा के साथ आम की बहार चली जाती है.
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