गरज रहे हैं, लरज रहे हैं, काले बादल बरस रहे हैं। कल तक तो सूखा-सूखा था, धरती का तन-मन रूखा था, आज झमा-झम बरस रहे हैं। काले बादल बरस रहे हैं।। भीग रहे हैं आँगन-उपवन, तृप्त हो रहे खेत, बाग, वन, उमड़-घुमड़ घन बरस रहे हैं। काले बादल बरस रहे हैं।। मुन्ना भीगा, मुन्नी भीगी, गोरी की है चुन्नी भीगी, जोर-शोर से बरस रहे हैं। काले बादल बरस रहे हैं।। श्याम घटाएँ घिर-घिर आयी, रिम-झिम की बजती शहनाई, जी भर कर अब बरस रहे हैं। काले बादल बरस रहे हैं।। |
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03 जुलाई, 2010
‘‘… ..बादल बरस रहे हैं?’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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बारिश पर लुभावनी रचना ।
जवाब देंहटाएंबारिश हो या ना हो ...आपकी इस खूबसूरत रचना की बौछार से ज़रूर भीग रहे हैं...
जवाब देंहटाएंSachmuch Sundar.
जवाब देंहटाएं................
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Jaisa mausam vaise kavita..wav !!!! Congratulation.......
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर गीत...............गाती हूँ.........हा हा हा .....
जवाब देंहटाएंyes, it is raining in Delhi
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