मेरी बालकृति नन्हें सुमन से एक बालकविता "तोते उड़ते पंख पसार"
नीला नभ जिनका संसार।
वो उड़ते हैं पंख पसार।।
जब कोई भी थक जाता है।
वो डाली पर सुस्ताता है।।
तोता पेड़ों का बासिन्दा।
कहलाता आजाद परिन्दा।।
खाने का सामान धरा है।
पर मन में अवसाद भरा है।।
लोहे का हो या कंचन का।
बन्धन दोनों में तन मन का।।
अत्याचार कभी मत करना।
मत इसको पिंजडे में धरना।।
कारावास बहुत दुखदायी।
जेल नहीं होती सुखदायी।।
मत देना इसको अवसाद।
करना तोते को आज़ाद।।
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20 नवंबर, 2013
“तोते उड़ते पंख पसार” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सुंदर बाल रचना
जवाब देंहटाएंअत्याचार कभी मत करना।
जवाब देंहटाएंमत इसको पिंजडे में धरना।।
कारावास बहुत दुखदायी।
जेल नहीं होती सुखदायी।।
सुन्दर।