मेरी बालकृति नन्हें सुमन से एक बाल कविता "खों-खों करके बहुत डराता"
बिना सहारे और सीढ़ी के, झटपट पेड़ों पर चढ़ जाता। गली मुहल्लों और छतों पर, खों-खों करके बहुत डराता।
कोई इसको वानर कहता, कोई हनूमान बतलाता। मानव का पुरखा बन्दर है, यह विज्ञान हमें सिखलाता।
लाठी और डुगडुगी लेकर, इसे मदारी खूब नचाता। यह करतब से हमें हँसाता, पैसा माँग-माँग कर लाता।
जंगल के आजाद जीव को,
मानव देखो बहुत सताता।
देख दुर्दशा इन जीवों की,
तरस हमें इन पर है आता।।
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सुन्दर बाल कविता -
जवाब देंहटाएंआभार गुरु जी-
अति सुन्दर
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर
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