मेरी बालकृति नन्हें सुमन से
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"सुमन हमें सिखलाते हैं"
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काँटों में पलना जिनकी,
किस्मत का लेखा है।
फिर भी उनको खिलते,
मुस्काते हमने देखा है।।
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कड़ी घूप हो सरदी या,
बारिस से मौसम गीला हो।
पर गुलाब हँसता ही रहता,
चाहे काला-पीला हो।।
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ये उपवन में हँसकर,
भँवरों के मन को बहलाते हैं।
दुख में कभी न विचलित होना,
सुमन हमें सिखलाते हैं।।
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31 जनवरी, 2014
"सुमन हमें सिखलाते हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
27 जनवरी, 2014
"बकरे बकरी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मेरी बालकृति नन्हें सुमन से

बालकविता
"बकरे बकरी"
इस बाल-कविता को सुनिए-
अर्चना चावजी के स्वर में-
अर्चना चावजी के स्वर में-
रबड़ प्लाण्ट का वृक्ष लगा है,
मेरे घर के आगे!
पत्ते खाने बकरे-बकरी,
आये भागे-भागे!

हुए बहुत मायूस, धरा पर
पत्ता कोई न पाया!
इन्हे उदास देखकर मैंने,
अपना हाथ बढ़ाया!!
झटपट पत्ता तोड़ पेड़ से,
हाथों में लहराया!
इन भोले-भाले जीवों का,
मन था अब ललचाया!!
आँखों में आशा लेकर,
सब मेरे पास चले आये!
उचक-उचककर बड़े चाव से
सबने पत्ते खाये!!
दुनिया के जीवों का,
यदि तुम प्यार चाहते पाना!
भूखों को सच्चे मन से
तुम भोजन सदा खिलाना!!
21 जनवरी, 2014
"हमारी माता" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मेरी बालकृति नन्हें सुमन से


बालकविता
"हमारी माता"

माता के उपकार बहुत,
वो भाषा हमें बताती है!
उँगली पकड़ हमारी माता,
चलना हमें सिखाती है!!
दुनिया में अस्तित्व हमारा,
माँ के ही तो कारण है,
खुद गीले में सोकर,
वो सूखे में हमें सुलाती है!
उँगली पकड़ हमारी……..
देश-काल चाहे जो भी हो,
माँ ममता की मूरत है,
धोकर वो मल-मूत्र हमारा,
पावन हमें बनाती है!
उँगली पकड़ हमारी……..
पुत्र कुपुत्र भले हो जायें,
होती नही कुमाता माँ,
अपने हिस्से की रोटी,
बेटों को सदा खिलाती है!
उँगली पकड़ हमारी……..
नहीं उऋण हो सकता कोई,
अपनी जननी के ऋण से,
माँ का आदर करो सदा,
यह रचना यही सिखाती है!
उँगली पकड़ हमारी……
17 जनवरी, 2014
"बेच रहा मैं भगवानों को" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मेरी बालकृति नन्हें सुमन से


बालकविता
"बेच रहा मैं भगवानों को"

सुन्दर-सुन्दर और सजीले!
आकर्षक और रंग-रंगीले!!
शिवशंकर और साँईबाबा!
यहाँ विराजे काशी-काबा!!
कृष्ण-कन्हैया अलबेला है!
कोई गुरू कोई चेला है!!
जग-जननी माँ पार्वती हैं!
धवल वस्त्र में सरस्वती हैं!!
आदि-देव की छटा निराली!
इनकी सूँड बहुत मतवाली!!
जो जी चाहे वो ले जाओ!
सिंहासन पर इन्हें बिठाओ!!
मन में हों यदि नेक भावना!
पूरी होंगी सभी कामना!!
बेच रहा मैं भगवानों को!
खोज रहा हूँ श्रीमानों को!!
ये सब मेरे भाग्य-विधाता!
भक्तों जोड़ो इनसे नाता!!
13 जनवरी, 2014
"चन्दा मामा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मेरी बालकृति नन्हें सुमन से


बालकविता
"चन्दा मामा"
नभ में कैसा दमक रहा है।
चन्दा मामा चमक रहा है।।
कभी बड़ा मोटा हो जाता।
और कभी छोटा हो जाता।।
करवा-चौथ पर्व जब आता।
चन्दा का महत्व बढ़ जाता।।
महिलाएँ छत पर जाकर के।
इसको तकती हैं जी-भर के।।
यह सुहाग का शुभ दाता है।
इसीलिए पूजा जाता है।।
जब भी वादल छा जाता है।
तब मयंक शरमा जाता है।।
लुका-छिपी का खेल दिखाता।
छिपता कभी प्रकट हो जाता।।
धवल चाँदनी लेकर आता।
आँखों को शीतल कर जाता।।
सारे जग से न्यारा मामा।
सब बच्चों का प्यारा मामा।।
09 जनवरी, 2014
"मधुमक्खी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मेरी बालकृति नन्हें सुमन से


बालकविता
"मधुमक्खी"
मधुमक्खी है नाम तुम्हारा।
शहद बनाती कितना सारा।।
इसको छत्ते में रखती हो।
लेकिन कभी नही चखती हो।।
कंजूसी इतनी करती हो।
रोज तिजोरी को भरती हो।।
दान-पुण्य का काम नही है।
दया-धर्म का नाम नही है।।
इक दिन डाका पड़ जायेगा।
शहद-मोम सब उड़ जायेगा।।
मिट जायेगा यह घर-बार।
लुट जायेगा यह संसार।।
जो मिल-बाँट हमेशा खाता।
कभी नही वो है पछताता।।
मधुमक्खी है नाम तुम्हारा।
शहद बनाती कितना सारा।।
इसको छत्ते में रखती हो।
लेकिन कभी नही चखती हो।।
कंजूसी इतनी करती हो।
रोज तिजोरी को भरती हो।।
दान-पुण्य का काम नही है।
दया-धर्म का नाम नही है।।
इक दिन डाका पड़ जायेगा।
शहद-मोम सब उड़ जायेगा।।
मिट जायेगा यह घर-बार।
लुट जायेगा यह संसार।।
जो मिल-बाँट हमेशा खाता।
कभी नही वो है पछताता।।
05 जनवरी, 2014
"टर्र-टर्र मेंढक टर्राए" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मेरी बालकृति नन्हें सुमन से

"टर्र-टर्र मेंढक टर्राए"
टर्र-टर्र मेंढक टर्राए!
शायद वर्षा जल्दी आये!
बाजारों में आम आ गये,
अमलतास पर फूल छा गये,
लेकिन बारिस नजर न आये!
टर्र-टर्र मेंढक टर्राए!
शायद वर्षा जल्दी आये!

"टर्र-टर्र मेंढक टर्राए"

शायद वर्षा जल्दी आये!

अमलतास पर फूल छा गये,
लेकिन बारिस नजर न आये!
टर्र-टर्र मेंढक टर्राए!
शायद वर्षा जल्दी आये!
सूख गये सब ताल-तलैय्या,
छोटू कहाँ चलाए नैय्या!
सबको गर्मी बहुत सताए!
टर्र-टर्र मेंढक टर्राए!
शायद वर्षा जल्दी आये!
छोटू कहाँ चलाए नैय्या!
सबको गर्मी बहुत सताए!
टर्र-टर्र मेंढक टर्राए!
शायद वर्षा जल्दी आये!
01 जनवरी, 2014
"स्वरावलि" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मेरी बालकृति नन्हें सुमन से

"स्वरावलि"
‘‘अ‘’
‘‘अ‘’ से अल्पज्ञ सब, ओम् सर्वज्ञ है।
ओम् का जाप, सबसे बड़ा यज्ञ है।।
‘‘आ’’
‘‘आ’’ से आदि न जिसका, कोई अन्त है।
सारी दुनिया का आराध्य, वह सन्त है।।
‘‘इ’’
‘‘इ’’ से इमली खटाई भरी, खान है।
खट्टा होना खतरनाक, पहचान है।।
‘‘ई’’
‘‘ई’’ से ईश्वर का जिसको, सदा ध्यान है।
सबसे अच्छा वही, नेक इन्सान है।।
‘‘उ’’
उल्लू बन कर निशाचर, कहाना नही।
अपना उपनाम भी यह धराना नही।।
‘‘ऊ’’
ऊँट का ऊँट बन, पग बढ़ाना नही।
ऊँट को पर्वतों पर, चढ़ाना नही।।
‘‘ऋ’’
‘‘ऋ’’ से हैं वह ऋषि, जो सुधारे जगत।
अन्यथा जान लो, उसको ढोंगी भगत।।
‘‘ए’’
‘‘ए’’ से है एकता में, भला देश का।
एकता मन्त्र है, शान्त परिवेश का।।
‘‘ऐ’’
‘‘ऐ’’ से तुम ऐठना मत, किसी से कभी।
हिन्द के वासियों, मिल के रहना सभी।।
‘‘ओ’’
‘‘ओ’’ से बुझती नही, प्यास है ओस से।
सारे धन शून्य है, एक सन्तोष से।।
‘‘औ’’
‘‘औ’’ से औरों को पथ, उन्नति का दिखा।
हो सके तो मनुजता, जगत को सिखा।।
‘‘अं’’
‘‘अं’’ से अन्याय सहना, महा पाप है।
राम का नाम जपना, बड़ा जाप है।।
‘‘अः’’
‘‘अः’’ के आगे का स्वर,अब बचा ही नही।
इसलिए, आगे कुछ भी रचा ही नही।।
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