मेरी बालकृति नन्हें सुमन से
बालकविता
"हमारी माता"
माता के उपकार बहुत,
वो भाषा हमें बताती है!
उँगली पकड़ हमारी माता,
चलना हमें सिखाती है!!
दुनिया में अस्तित्व हमारा,
माँ के ही तो कारण है,
खुद गीले में सोकर,
वो सूखे में हमें सुलाती है!
उँगली पकड़ हमारी……..
देश-काल चाहे जो भी हो,
माँ ममता की मूरत है,
धोकर वो मल-मूत्र हमारा,
पावन हमें बनाती है!
उँगली पकड़ हमारी……..
पुत्र कुपुत्र भले हो जायें,
होती नही कुमाता माँ,
अपने हिस्से की रोटी,
बेटों को सदा खिलाती है!
उँगली पकड़ हमारी……..
नहीं उऋण हो सकता कोई,
अपनी जननी के ऋण से,
माँ का आदर करो सदा,
यह रचना यही सिखाती है!
उँगली पकड़ हमारी……
ma hai to ham hain .....sundar abhiwayakti ....
जवाब देंहटाएंमाँ के ऋण से भला कौन उऋण हो सकता है ! भावपूर्ण बहुत ही सुंदर रचना !
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