मेरी बालकृति नन्हें सुमन से
बालकविता
"मधुमक्खी"
मधुमक्खी है नाम तुम्हारा।
शहद बनाती कितना सारा।।
इसको छत्ते में रखती हो।
लेकिन कभी नही चखती हो।।
कंजूसी इतनी करती हो।
रोज तिजोरी को भरती हो।।
दान-पुण्य का काम नही है।
दया-धर्म का नाम नही है।।
इक दिन डाका पड़ जायेगा।
शहद-मोम सब उड़ जायेगा।।
मिट जायेगा यह घर-बार।
लुट जायेगा यह संसार।।
जो मिल-बाँट हमेशा खाता।
कभी नही वो है पछताता।।
मधुमक्खी है नाम तुम्हारा।
शहद बनाती कितना सारा।।
इसको छत्ते में रखती हो।
लेकिन कभी नही चखती हो।।
कंजूसी इतनी करती हो।
रोज तिजोरी को भरती हो।।
दान-पुण्य का काम नही है।
दया-धर्म का नाम नही है।।
इक दिन डाका पड़ जायेगा।
शहद-मोम सब उड़ जायेगा।।
मिट जायेगा यह घर-बार।
लुट जायेगा यह संसार।।
जो मिल-बाँट हमेशा खाता।
कभी नही वो है पछताता।।
sahi bat ....
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