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06 जून, 2010

"कल मुझको तुम भूल न जाना!" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

आमों के बागों में जाकर,
आम टोकरी भरकर लाया!
घर के लोगों ने जी भरकर,
चूस-चूस कर इनको खाया!!
प्राची बिटिया और प्रांजल,
बड़े चाव से इनको खाते!
मीठे-मीठे और रसीले,
आम बहुत इनको हैं भाते!!
राज-दुलारो, नन्हे-मुन्नों,
कल मुझको तुम भूल न जाना!
जब मैं बूढ़ा हो जाऊँगा,
इसी तरह तुम मुझे खिलाना!!


12 टिप्‍पणियां:

  1. वाह्…………आमों के माध्यम से ज़िन्दगी का खाका खूब खींचा है।

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  2. आम तो बहुत खट्टे हैं लाख कोशिस करने पर एक को भी हाथ न लगा सका पर हम कब से अपने बलाग पर आपके आशीर्वाद की राह देख रहे हैं आप हैं कि आते ही नहीं।

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  3. पसंद के चटके के साथ आपका धन्यावाद जी

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  4. बहुत सुंदर भाव लिए कविता |बधाई
    आशा

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  5. अच्छी सीख नन्हें मुन्नों को.

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  6. बहुत सुन्दर...मन को छू गयी ये रचना...

    सन्देश देती हुई ...

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  7. सुन्दर भाव के साथ दिल को छू लेने वाली कविता लिखा है आपने!

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  8. कल मंगलवार को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है



    http://charchamanch.blogspot.com/

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