ठण्डी-ठण्डी हवा खिलाये। इसी लिए कूलर कहलाये।। जब जाड़ा कम हो जाता है। होली का मौसम आता है।। फिर चलतीं हैं गर्म हवाएँ। यही हवाएँ लू कहलायें।। तब यह बक्सा बड़े काम का। सुख देता है परम धाम का।। कूलर गर्मी हर लेता है। कमरा ठण्डा कर देता है।। चाहे घर हो या हो दफ्तर। सजा हुआ है यह खिड़की पर।। इसकी महिमा अपरम्पार। यह ठण्डक का है भण्डार।। जब आता है मास नवम्बर। बन्द सभी हो जाते कूलर।। (चित्र गूगल सर्च से साभार) |
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28 अप्रैल, 2010
‘‘कूलर’’ (डा. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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नन्हे सुमन पर सार्थक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया!
जवाब देंहटाएंBAHUT KHUB
जवाब देंहटाएंBADHAI IS KE LIYE AAP KO
SHEKHAR KUMAWAT
सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंइसे पढ़ते ही गरमी कुछ कम हो गई!
जवाब देंहटाएं--
मेरा मन मुस्काया -
झिलमिल करते सजे सितारे!
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संपादक : सरस पायस
बहुत खूब ..सुन्दर प्रस्तुति...ठंडी हवा का झोंका सा देती रचना....बधाई
जवाब देंहटाएंआपकी पकड इतनी मस्त है भाषा पर कि बडी ही सहजता से छोटी सी चीज को भी बडा और आकर्षक बना देते हैं।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बहुत प्यारा गीत है..मजा आ गया पढ़कर.
जवाब देंहटाएं*******************************
पाखी की दुनिया में इस बार चिड़िया-टापू की सैर !!
बहुत प्यारा गीत है
जवाब देंहटाएंsundar rachna. Badhai!
जवाब देंहटाएंबढ़िया होने के कारण
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच पर
मेरा मन मुस्काया!
शीर्षक के अंतर्गत
इस पोस्ट की चर्चा की गई है!
अति सुन्दर पढ़ कर आनन्द आया।
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर, पढ़ कर आनन्द आया।
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