यह ब्लॉग खोजें

02 अप्रैल, 2010

“पढ़ना-लिखना मजबूरी है!” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)


मुश्किल हैं विज्ञान, गणित,
हिन्दी ने बहुत सताया है।
अंग्रेजी की देख जटिलता,
मेरा मन घबराया है।।  


भूगोल और इतिहास मुझे,
बिल्कुल भी नही सुहाते हैं।
श्लोकों के कठिन अर्थ,
मुझको करने नही आते हैं।। 


देखी नही किताब उठाकर,
खेल-कूद में समय गँवाया,
अब सिर पर आ गई परीक्षा,
माथा मेरा चकराया।। 


बिना पढ़े ही मुझको,
सारे प्रश्नपत्र हल करने हैं।
किस्से और कहानी से ही,
कागज-कॉपी भरने हैं।।


नाहक अपना समय गँवाया,
मैं यह खूब मानता हूँ।
स्वाद शून्य का चखना होगा,
मैं यह खूब जानता हूँ।।


तन्दरुस्ती के लिए खेलना,
सबको बहुत जरूरी है।
किन्तु परीक्षा की खातिर,
पढ़ना-लिखना मजबूरी है।।

2 टिप्‍पणियां:

  1. likhna padhna jaroori bhi to hai na ....................bahut hi sundar kavita.

    जवाब देंहटाएं
  2. तन्दरुस्ती के लिए खेलना,
    सबको बहुत जरूरी है।
    किन्तु परीक्षा की खातिर,
    पढ़ना-लिखना मजबूरी है।।

    दोनों ही बाते जरूरी है , बढ़िया बाल कविता !

    जवाब देंहटाएं

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथासम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।