मई महीना आता है और, जब गर्मी बढ़ जाती है। नानी जी के घर की मुझको, बेहद याद सताती है।। तब मैं मम्मी से कहती हूँ, नानी के घर जाना है। नानी के प्यारे हाथों से, आइसक्रीम भी खाना है।। कथा-कहानी मम्मी तुम तो, मुझको नही सुनाती हो। नानी जैसे मीठे स्वर में, गीत कभी नही गाती हो।। मेरी नानी मेरे संग में, दिन भर खेल खेलतीं है। मेरी नादानी-शैतानी, हँस-हँस रोज झेलतीं हैं।। मास-दिवस गिनती हैं नानी, आस लगाये रहती हैं। प्राची-बिटिया को ले आओ, वो नाना से कहती हैं।। |
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14 अप्रैल, 2010
“नानी जी का घर” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
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अब तो नाना के घर जाने की तैयारी होगी. मई महीना जो आने वाला है
जवाब देंहटाएंare waah.........bahut hi sundar baal kavita hai.
जवाब देंहटाएंbahut pyaari kavita hai , idhar ham bhi apne laadale kee naanee ke ghar matlab apne mammee paapaa ke paas jaane ki taiyaari kar rahe hai , mai maheenaa jo aa rahaa hai...:)
जवाब देंहटाएं।
जवाब देंहटाएंनानी के प्यारे हाथों से,
आइसक्रीम भी खाना है।।
कथा-कहानी मम्मी तुम तो,
मुझको नही सुनाती हो।
नानी जैसे मीठे स्वर में
bachchon ka masoom bachpan hai aapki muththi me
यह कविता पढ़कर तो
जवाब देंहटाएंहमें भी अपने नाना-नानी की याद आ गई!
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रंग-रँगीला जोकर
माँग नहीं सकता न, प्यारे-प्यारे, मस्त नज़ारे!
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संपादक : सरस पायस
बच्चों के मन के भाव कितनी खूबसूरती से कह देते हैं आप....बहुत प्यारी रचना
जवाब देंहटाएंतब मैं मम्मी से कहती हूँ,
जवाब देंहटाएंनानी के घर जाना है।
नानी के प्यारे हाथों से,
आइसक्रीम भी खाना है।।
...हम भी ऐसा ही कुछ सोच रहे हैं..
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'पाखी की दुनिया' में इस बार "मम्मी-पापा की लाडली"
बहुत सुंदर चित्रण किया है
जवाब देंहटाएंनाना नानी के घर तो बहुत मजा आता है
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