महाकुम्भ-स्नान हरिद्वार, उज्जैन, प्रयाग। नासिक के जागे हैं भाग।। बहुत बड़ा यहाँ लगता मेला। लोगों का आता है रेला।। सुर-सरिता के पावन तट पर। सभी लगाते डुबकी जी भर।। बारह वर्ष बाद जो आता। महाकुम्भ है वो कहलाता।। भक्त बहुत इसमें जाते हैं। साधू-सन्यासी आते हैं।। जन-मन को हर्षाने वाला। श्रद्धा का यह पर्व निराला।। (चित्र गूगल सर्च से साभार) |
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25 अप्रैल, 2010
“महाकुम्भ-मेला” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
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gazab ki prastuti.........mahakumbh ke ghar baithe hi darshan kara diye.
जवाब देंहटाएंकुम्भ खत्म
जवाब देंहटाएंकविता शुरू
वाह बहुत सुन्दर चित्रों के साथ आपने बखूबी प्रस्तुत किया है! महाकुम्भ का दर्शन करवाने के लिए धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबिल्कुल नए विषय को चुनकर
जवाब देंहटाएंरची गई जानकारी देती हुई बालकविता!
चित्रों के साथ और कविता में बहते हुए महाकुम्भ का आनंद हमें भी मिला...आभार
जवाब देंहटाएंBhai ghar baithe maza aa gaya. Dil se Badhai!!
जवाब देंहटाएंबढिया रचना !!
जवाब देंहटाएंउपयोगी होने के कारण
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच पर
मेरा मन मुस्काया!
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