रंग-बिरंगी पेंसिलें तो, हमको खूब लुभाती हैं। ये ही हमसे ए.बी.सी.डी., क.ख.ग. लिखवाती हैं।। रेखा-चित्र बनाना, इनके बिना असम्भव होता है। कला बनाना भी तो, केवल इनसे सम्भव होता है।। गल्ती हो जाये तो, लेकर रबड़ तुरन्त मिटा डालो। गुणा-भाग करना चाहो तो, बस्ते में से इसे निकालो।। छोटी हो या बड़ी क्लास, ये काम सभी में आती है। इसे छीलते रहो कटर से, यह चलती ही जाती है।। तख्ती,कलम,स्लेट का, तो इसने कर दिया सफाया है। बदल गया है समय पुराना, नया जमाना आया है।। (चित्र गूगल सर्च से साभार) |
यह ब्लॉग खोजें
11 अप्रैल, 2010
“पेंसिल” (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
वाह...पेंसिल के सारे गुण बता दिए इस बालकविता ने....बहुत अच्छी कविता
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंवाह बहुत ही सुन्दर बाल कविता।
जवाब देंहटाएंपेंसिल की उपयोगिता का बखान करती
जवाब देंहटाएंएक उपयोगी बाल-कविता!
sundar rachna. pencil ke sab labh batati.
जवाब देंहटाएंपेंसिल की उपयोगिता का बखान करती
जवाब देंहटाएंएक उपयोगी बाल-कविता!
चर्चा मंच पर
जवाब देंहटाएंमहक उठा मन
शीर्षक के अंतर्गत
इस पोस्ट की चर्चा की गई है!
--
संपादक : सरस पायस