मेरी बालकृति नन्हें सुमन से
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एक बालकविता
होता कभी नही है मौन!
यह है मेरा टेलीफोन!!
इसमें जब घण्टी आती है,
लाल रौशनी जल जाती है,
हाथों में तब इसे उठाकर,
बड़े मजे से कान लगा कर,
मीठी भाषा में कहती हूँ,
हैल्लो बोल रहे हैं कौन!
यह है मेरा टेलीफोन!!
कभी-कभी दादी-दादा से,
और कभी नानी-नाना से,
थोड़ी नही ढेर सारी सी,
करते बातें हम प्यारी सी,
लेकिन तभी हमारी मम्मी,
देतीं काट हमारा फोन!
यह है मेरा टेलीफोन!!
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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28 दिसंबर, 2013
"मेरा टेलीफोन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
24 दिसंबर, 2013
"मेरा झूला बड़ा निराला" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मेरी बालकृति नन्हें सुमन से
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एक बालकविता
"मेरा झूला बड़ा निराला"
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मम्मी जी ने इसको डाला।
मेरा झूला बडा़ निराला।।
खुश हो जाती हूँ मैं कितनी,
जब झूला पा जाती हूँ।
होम-वर्क पूरा करते ही,
मैं इस पर आ जाती हूँ।
करता है मन को मतवाला।
मेरा झूला बडा़ निराला।।
मुझको हँसता देख,
सभी खुश हो जाते हैं।
बाबा-दादी, प्यारे-प्यारे,
नये खिलौने लाते हैं।
आओ झूलो, मुन्नी-माला।
मेरा झूला बडा़ निराला।।
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20 दिसंबर, 2013
"गैस सिलेण्डर" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मेरी बालकृति नन्हें सुमन से
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एक बालकविता
"गैस सिलेण्डर"
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मम्मी की आँखों का तारा।
गैस सिलेण्डर कितना प्यारा।।
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रेगूलेटर अच्छा लाना।
सही ढंग से इसे लगाना।।
गैस सिलेण्डर है वरदान।
यह रसोई-घर की है शान।।
दूघ पकाओ, चाय बनाओ।
मनचाहे पकवान बनाओ।।
बिजली अगर नही है घर में।
यह प्रकाश देता पल भर में।।
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बाथरूम में इसे लगाओ।
गर्म-गर्म पानी से न्हाओ।।
बीत गया है वक्त पुराना।
अब आया है नया जमाना।।
कण्डे, लकड़ी अब नही लाना।
बड़ा सहज है गैस जलाना।।
किन्तु सुरक्षा को अपनाना।
इसे कार में नही लगाना।
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14 दिसंबर, 2013
"नया राष्ट्र निर्माण करेंगे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मेरी बालकृति नन्हें सुमन से![]() एक बालकविता "नया राष्ट्र निर्माण करेंगे" हम भारत के भाग्य विधाता, नया राष्ट्र निर्माण करेंगे । निज-भारत के लिए निछावर, हँस-हँस अपने प्राण करेंगे ।। गौतम, गाँधी, इन्दिरा जी की, हम ही तो तस्वीर हैं, हम ही भावी कर्णधार हैं, हम भारत के वीर हैं, भेद-भाव का भूत भगा कर, चारु राष्ट्र निर्माण करेंगे । देश-प्रेम के लिए न्योछावर, हँस-हँस अपने प्राण करेंगे ।। चम्पा, गेन्दा, गुल-गुलाब ने, पुष्प-वाटिका महकाई, हिन्द, मुस्लिम, सिख, ईसाई, आपस में भाई-भाई, सब मिल-जुल कर आपस में, सुदृढ़ राष्ट्र निर्माण करेगे । देश-प्रेम के लिए न्योछावर, हँस-हँस अपने प्राण करेंगे ।। भगतसिंह, अशफाक -उल्ला की, आन न हम मिटने देगे, धर्म-मजहब की खातिर अपनी ,शान न हम मिटने देंगे, कौमी -एकता को अपना कर धवल -राष्ट्र निर्माण करेंगे । देश-प्रेम के लिए न्योछावर,हँस-हँस अपने प्राण करेंगे ।। दिशा-दिशा में, नगर-ग्राम में, बीज शान्ति के उपजायेंगे, विश्व शान्ति की पहल करेंगे, राष्ट्र पताका लहरायेंगे, भारत के सच्चे प्रहरी बन, स्वच्छ राष्ट्र निर्माण करेंगे । देश-प्रेम के लिए न्योछावर, हँस-हँस अपने प्राण करेंगे ।। |
10 दिसंबर, 2013
"इण्टरनेट" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मेरी बालकृति नन्हें सुमन से![]() एक बालकविता "इण्टरनेट" करता है हर बात उजागर। इण्टर-नेट ज्ञान का सागर।। इससे मेल मुफ्त हो जाता। दूर देश में बात कराता।। ![]() टेबिल पर है सारी दुनिया।। लन्दन हो या हो अमरीका। आबूधाबी या अफ्रीका।। ![]() बादल, घूप और छाँव देख लो।। उड़न-तश्तरी यह समीर की। यह थाली है भरी खीर की।। जग भर की जितनी हैं भाषा। सबकी है इसमें परिभाषा।। ![]() पर्वत की हर शिखर चूम लो।। चाहे शोख नजारे देखो। सजे-धजे गलियारे देखो।। अन्तर्-जाल बड़े मनवाला। कर देता है यह मतवाला।। ![]() फिर इससे जी भरकर खेलो।। आओ इण्टर-नेट पढ़ाएँ। मौज मनाएँ, ज्ञान बढ़ाएँ।। |
06 दिसंबर, 2013
"डस्टर कष्ट बहुत देता है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मेरी बालकृति नन्हें सुमन से![]() एक बालकविता "डस्टर कष्ट बहुत देता है" खुद तो धूल भरा होता है, लेकिन सबकी धूल हटाता। ब्लैकबोर्ड पर लिखे हुए को, जल्दी-जल्दी यह मिटाता।। विद्यालय अच्छा लगता, पर डस्टर बहुत कष्ट देता है। पढ़ना तो अच्छा लगता, पर लिखना बहुत कष्ट देता है।। दीदी जी तो अच्छी लगतीं, पर वो काम बहुत देतीं हैं। छोटी सी गलती पर भी वो, जस्टर कई जमा देतीं हैं।। कोई तो उनसे ये पूछे, क्या डस्टर का काम यहीं है। कोमल हाथों पर चटकाना, क्या डस्टर का काम यही है।। ![]() दीदी हम छोटे बच्चे हैं, कुछ तो रहम दिखाओ ना। डाँटो भी-फटकारो भी, पर हमको मार लगाओ ना।। |
02 दिसंबर, 2013
"काला कागा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मेरी बालकृति नन्हें सुमन से![]() एक बालकविता "काला कागा" लगता बिल्कुल भोला-भाला।। काँव-काँव करके चिल्लाता।। पहुँचा बादल के आँगन में।। नाप रहा नभ की ऊँचाई।।
चतुर बहुत है काला कागा।
किन्तु नही बन पाया राजा।।
पितृ-जनों का इससे नाता।
यह दुनिया को पाठ पढ़ाता।।
धोखा कभी नहीं वो पाता। |
28 नवंबर, 2013
"यह है मेरी काली कार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मेरी बालकृति नन्हें सुमन से![]() एक बालकविता"यह है मेरी काली कार" यह है मेरी काली कार। करती हूँ मैं इसको प्यार।। जब यह फर्राटे भरती है, बिल्कुल शोर नही करती है, सिर्फ घूमते चक्के चार। करती हूँ मैं इसको प्यार।। जब छुट्टी का दिन आता है, करना सफर हमें भाता है, हम इससे जाते हरद्वार। करती हूँ मैं इसको प्यार।। गीत, गजल और भजन-कीर्तन, सुनो मजे से, जब भी हो मन, मंजिल यह कर देती पार। करती हूँ मैं इसको प्यार।। |
24 नवंबर, 2013
"सीधा प्राणी गधा कहाता" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
20 नवंबर, 2013
“तोते उड़ते पंख पसार” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मेरी बालकृति नन्हें सुमन से![]() एक बालकविता "तोते उड़ते पंख पसार"
नीला नभ जिनका संसार।
वो उड़ते हैं पंख पसार।।
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जब कोई भी थक जाता है।
वो डाली पर सुस्ताता है।।
तोता पेड़ों का बासिन्दा।
कहलाता आजाद परिन्दा।।
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खाने का सामान धरा है।
पर मन में अवसाद भरा है।।
लोहे का हो या कंचन का।
बन्धन दोनों में तन मन का।।
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अत्याचार कभी मत करना।
मत इसको पिंजडे में धरना।।
कारावास बहुत दुखदायी।
जेल नहीं होती सुखदायी।।
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मत देना इसको अवसाद।
करना तोते को आज़ाद।।
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16 नवंबर, 2013
"वानर" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मेरी बालकृति नन्हें सुमन से![]() एक बालकविता "वानर" ![]() जंगल में कपीश का मन्दिर। जिसमें पूजा करते बन्दर।। ![]() कभी यह ऊपर को बढ़ता। डाल पकड़ पीपल पर चढ़ता।। ![]() ऊपर जाता, नीचे आता। कभी न आलस इसे सताता।। उछल-कूद वानर करता है। बहुत कुलाँचे यह भरता है।। |
12 नवंबर, 2013
"सेबों का मौसम" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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