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18 जनवरी, 2017

बालकविता "नौकर है यह बिना दाम का" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)


यह कुत्ता है बड़ा शिकारी।
बिल्ली का दुश्मन है भारी।।

बन्दर अगर इसे दिख जाता।
भौंक-भौंक कर उसे भगाता।।

उछल-उछल कर दौड़ लगाता।
बॉल पकड़ कर जल्दी लाता।।

यह सीधा-सच्चा लगता है।
बच्चों को अच्छा लगता है।।

धवल दूध सा तन है सारा।
इसका नाम फिरंगी प्यारा।।

आँखें इसकी चमकीली हैं।
भूरी सी हैं और नीली हैं।।

जग जाता है यह आहट से।
साथ-साथ चल पड़ता झट से।।

प्यारा सा पिल्ला ले आना।
सुवह शाम इसको टहलाना।।

वफादार है बड़े काम का।
नौकर है यह बिना दाम का।।

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