मई महीना आता है और, जब गर्मी बढ़ जाती है। नानी जी के घर की मुझको, बेहद याद सताती है।। तब मैं मम्मी से कहती हूँ, नानी के घर जाना है। नानी के प्यारे हाथों से, आइसक्रीम भी खाना है।। कथा-कहानी मम्मी तुम तो, मुझको नही सुनाती हो। नानी जैसे मीठे स्वर में, गीत कभी नही गाती हो।। मेरी नानी मेरे संग में, दिन भर खेल खेलतीं है। मेरी नादानी-शैतानी, हँस-हँस रोज झेलतीं हैं।। मास-दिवस गिनती हैं नानी, आस लगाये रहती हैं। प्राची-बिटिया को ले आओ, वो नाना से कहती हैं।। |
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22 जनवरी, 2017
बालकविता "नानी के घर जाना है" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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