मन को बहुत लुभाने वाली, तितली रानी कितनी सुन्दर। भरा हुआ इसके पंखों में, रंगों का है एक समन्दर।। उपवन में मंडराती रहती, फूलों का रस पी जाती है। अपना मोहक रूप दिखाने, यह मेरे घर भी आती है।। भोली-भाली और सलोनी, यह जब लगती है सुस्ताने। इसे देख कर एक छिपकली, आ जाती है इसको खाने।। आहट पाते ही यह उड़ कर, बैठ गयी चौखट के ऊपर। मेरा मन भी ललचाया है, मैं भी देखूँ इसको छूकर।। इसके रंग-बिरंगे कपड़े, होली की हैं याद दिलाते। सजी धजी दुल्हन को पाकर, बच्चे फूले नही समाते।। |
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09 जनवरी, 2017
बालकविता "तितली रानी कितनी सुन्दर" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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