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17 फ़रवरी, 2010

“बाल-गीत” (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

हाथी दादा सूंड उठा कर,

चले देखने मेला।


बन्दर मामा साथ हो लिया,

बन करके उनका चेला।


चाट पकौड़ी खूब उड़ाई,


देख चाट का ठेला।


बड़े मजे से फिर दोनों ने,


जम करके खाया केला।


अब दोनों आपस में बोले, 


अच्छा लगा बहुत मेला।


(चित्र गुगल सर्च से साभार)

6 टिप्‍पणियां:

  1. मजेदार बाल गीत शास्त्री जी, चित्रों ने तो कविता में और जान फूक दी !

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  2. bahut hi majedar baal geet chitron ke sath.........bahut achcha laga.

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  3. मज़ा आ गया शास्त्री जी! बहुत ही सुन्दर लगा !

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