“भैया! मुझको भी, लिखना-पढ़ना, सिखला दो!”
भैया! मुझको भी,
लिखना-पढ़ना, सिखला दो।
क.ख.ग.घ, ए.बी.सी.डी,
गिनती भी बतला दो।।
पढ़ लिख कर मैं,
मम्मी-पापा जैसे काम करूँगी।
दुनिया भर में,
बापू जैसा अपना नाम करूँगी।।
रोज-सवेरे, साथ-तुम्हारे,
मैं भी उठा करूँगी।
पुस्तक लेकर पढ़ने में,
मैं संग में जुटा करूँगी।।
बस्ता लेकर विद्यालय में,
मुझको भी जाना है।
इण्टरवल में टिफन खोल कर,
खाना भी खाना है।।
छुट्टी में गुड़िया को,
ए.बी.सी.डी, सिखलाऊँगी।
उसके लिए पेंसिल और,
इक कापी भी लाऊँगी।। |
मयंक जी आपकी कल्म को सलाम है आप रोज़ इतने सुन्दर गीत ,कविता लिख लेते हैं इस सुन्दर बाल रचना के लिये बधाई स्वीकार करें धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंअतिसुंदर अभिलाषा.
जवाब देंहटाएंयही है राईट च्वाईस
जवाब देंहटाएंनाईस पर नाईस
बहुत सुन्दर बात!
जवाब देंहटाएंBahut Sundar Baal kavita ....Aadarniya Nirmalaji ki tarah main bhi aapki lekhani ka kamal dekh istabhdh rahati hun!
जवाब देंहटाएंSaadar
http://kavyamanjusha.blogspot.com/
nice
जवाब देंहटाएंआज तो nice वर्षा होगी यहाँ ! शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंaajkal to baal geet padhkar bahut achcha lag raha hai........dil bachcha ban jata hai.
जवाब देंहटाएंbahut hi sahaj bachchon kee baten
जवाब देंहटाएंलड़कियों को शिक्षा का महत्तव बताती खूबसूरत रचना..
जवाब देंहटाएंसुंदर संदेश देती अच्छी रचना ........
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