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03 मार्च, 2010

“मदारी का खेल : रानीविशाल” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

"एक खेल मदारी का"

डम-डम, डम-डम डमरू बाजा।
उछला-कूदा, छुटकू राजा।।

खाना खाकर ताजा-ताजा।
ठुमक-ठुमककर छुटकू नाचा।।
वानर-राजा खेल दिखाते।
बच्चे तालीखूब बजाते।। 
छुटकी को कर रहा  इशारा।
लगता सबको कितना प्यारा।।
अब छुटकी भी उठकर आई।
खेल-खेल में धूम मचाई।।
सबको जमकर खूब हँसाया। 
हाथ जोड़कर शीश नवाया।।
कितनी मेहनत दोनों करते।
पेट मदारी का ये भरते।।

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही प्यारी कविता लगी ।

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  2. बहुत सुन्दर...ऐसा लगा की सामने ही मदारी खेल दिखा रहा है.....बधाई

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  3. Aap sab ko bahut bahut dhanywaad aur sabse jyada aabhar adarniya Shashtriji ka jinhone rachana ke swarup ko apane shabd shilp se bahut khubsurat banaya hai...aapko phir se dhanyawaad!

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