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05 मार्च, 2010

‘‘बालक की इच्छा’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

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मैं अपनी मम्मी-पापा के,
नयनों का हूँ नन्हा-तारा।
मुझको लाकर देते हैं वो,
रंग-बिरंगा सा गुब्बारा।।

मुझे कार में बैठाकर,
वो रोज घुमाने जाते हैं।
पापा जी मेरी खातिर,
कुछ नये खिलौने लाते हैं।।
मैं जब चलता ठुमक-ठुमक,
वो फूले नही समाते हैं।
जग के स्वप्न सलोने,
उनकी आँखों में छा जाते हैं।।
ममता की मूरत मम्मी-जी,
पापा-जी प्यारे-प्यारे।
मेरे दादा-दादी जी भी,
हैं सारे जग से न्यारे।।
सपनों में सबके ही,
सुख-संसार समाया रहता है।
हँसने-मुस्काने वाला,
परिवार समाया रहता है।।
मुझको पाकर सबने पाली हैं,
नूतन अभिलाषाएँ।
क्या मैं पूरा कर कर पाऊँगा,
उनकी सारी आशाएँ।।
मुझको दो वरदान प्रभू!
मैं सबका ऊँचा नाम करूँ।
मानवता के लिए जगत में,
अच्छे-अच्छे काम करूँ।। 
(चित्र गूगल सर्च से साभार)

4 टिप्‍पणियां:

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