मेरा बस्ता कितना भारी।
बोझ उठाना है लाचारी।।
मेरा तो नन्हा सा मन है।
छोटी बुद्धि दुर्बल तन है।।
पढ़नी पड़ती सारी पुस्तक।
थक जाता है मेरा मस्तक।।
रोज-रोज विद्यालय जाना।
बड़ा कठिन है भार उठाना।।
कम्प्यूटर का युग अब आया।
इसमें सारा ज्ञान समाया।।
मोटी पोथी सभी हटा दो।
बस्ते का अब भार घटा दो।।
थोड़ी कॉपी, पेन चाहिए।
हमको मन में चैन चाहिए।।
कम्प्यूटर जी पाठ पढ़ायें।
हम बच्चों का ज्ञान बढ़ाये।
सस्ते में चल जाये काम।
छोटा बस्ता हो आराम।।
(चित्र गूगल सर्च से साभार) |
nice
जवाब देंहटाएंआज बच्चों के भारी बस्तों का सटीक चित्र खींचा है....बहुत अच्छी रचना...बधाई
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar likha hai.......bachchon ke haal par.
जवाब देंहटाएंबढ़िया!
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
Nice poem शास्त्री जी , मगर इस कंप्यूटर युग से बच्चो के आँखों का भी ख्याल रखना होगा !
जवाब देंहटाएंबस एक स्लेट चाहिए। बस्ते का तो बोझ कम होना ही चाहिए।
जवाब देंहटाएंबस्ता हटाओ
जवाब देंहटाएंस्लेट लाओ
बहुत बढ़िया..
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