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12 मार्च, 2010

‘‘फ्रिज’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

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बाबा जी का रेफ्रीजेटर,
लाल रंग का बड़ा सलोना।

किन्तु हमारा है छोटा सा,
लगता जैसे एक खिलौना।।


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सब्जी, दूध, दही, मक्खन,
फ्रिज में आरक्षित रहता।

पानी रखो बर्फ जमाओ,
मैं दादी-अम्माँ से कहता।।


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ठण्डी-ठण्डी आइस-क्रीम भी,


इसमें है जम जाती।


गर्मी के मौसम में कुल्फी,


बच्चों के मन को भाती।।
आम, सेब, अंगूर आदि फल,
फ्रिज में रखे जाते हैं।

ठण्डे पानी की बोतल,
हम इसमें से ही लाते हैं।।

इस अल्मारी को लाने की,
इच्छा है जन-जन में।

फ्रिज को पाने की जिज्ञासा,
हर नारी के मन में।।


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घड़े और मटकी का इसने,
तो कर दिया सफाया है।

समय पुराना बीत गया,
अब नया जमाना आया है।।

11 टिप्‍पणियां:

  1. घड़े और मटकी का इसने,
    तो कर दिया सफाया है।
    आपका यह बाल गीत
    मुझको तो बहुत भाया है.

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत अच्छा लगा ये बाल गीत धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  3. मेरा लाल रंग का फ्रीज आपको कहाँ से दिखायी दे गया जो उसी का चित्र दे दिया। बढिया है, अब बेचारे मटकों के दिन तो लद गए। लेकिन एक बात आपको बताएं। हमारे उदयपुर में प्रतिवर्ष मटकों का मेला भरता है। अभी कुछ दिन पहले ही लगा था, एक भी मटका नहीं बचा, सभी बिक गए। अभी देश की बहुत बड़ी जनसंख्‍या है जो इनकी आवश्‍यकता को जानती है।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर बाल गीत...फ्रिज की उपयोगिता का सुन्दर वर्णन ..

    जवाब देंहटाएं

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