बस में जाने में मुझको,
आनन्द बहुत आता है।
खिड़की के नजदीक बैठना,
मुझको बहुत सुहाता है।।
(चित्र गूगल सर्च से साभार)
पहले मैं विद्यालय में,
रिक्शा से आता-जाता था।
रिक्शे-वाले की हालत पर,
तरस मुझे आता था।।
(चित्र गूगल सर्च से साभार)
लेकिन अब विद्यालय में,
इक नयी-नवेली बस आयी।
पीले रंग वाली सुन्दर सी,
गाड़ी बच्चों ने पायी।।
आगे हैं दो काले टायर,
पीछे लगे चार चक्के।
बड़े जोर से हार्न बजाती,
हो जाते हम भौंचक्के।।
पढ़-लिख कर मैं खोलूँगा,
छोटे बच्चों का विद्यालय।
अलख जगाऊँगा शिक्षा की,
पाऊँगा जीवन की लय।। |
खिड़की के नजदीक बैठना,
जवाब देंहटाएंमुझको बहुत सुहाता है।।
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सुन्दर बाल रचनाओं में आपका सानी नहीं
बेमिसाल
नन्हे सुमन के पाठक इन पहेलियों को याद करके आनंद लें......
जवाब देंहटाएं.............
विलुप्त होती... नानी-दादी की बुझौअल, बुझौलिया, पहेलियाँ....बूझो तो जाने....
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http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_23.html
लड्डू बोलता है ....इंजीनियर के दिल से....
बस कविता ने तो बेबस कर दिया है मयंक जी।
जवाब देंहटाएंउम्दा संदेश लिए रचना..बढ़िया!!
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हिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!
लेखन के साथ साथ प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु टिप्पणी करना आपका कर्तव्य है एवं भाषा के प्रचार प्रसार हेतु अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. यह एक निवेदन मात्र है.
अनेक शुभकामनाएँ.
अति उत्तम रचना है
जवाब देंहटाएंबाल मन का अति मनोहारी वर्रण किया है
बच्चों के प्रिय विषय पर आपने बहुत ही अच्छी कविता लिखी है!मेरी छोटी बेटी ने तो बाल सभा के लिए इसे याद भी कर लिया है!धन्यवाद!!
जवाब देंहटाएंबाल मन के साथ हर दिल को लुभाने वालि कविता………बहुत ही सुन्दर्।
जवाब देंहटाएंबस से बच्चों का विद्यालय जाना ....आँखों के सामने द्रश्य उपस्थित हो गया ...सुन्दर रचना
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