लाल और काले रंग वाली,
मेरी पतंग बड़ी मतवाली।
मैं जब विद्यालय से आता,
खाना खा झट छत पर जाता।
पतंग उड़ाना मुझको भाता,
बड़े चाव से पेंच लड़ाता।
पापा-मम्मी मुझे रोकते,
बात-बात पर मुझे टोकते।
लेकिन मैं था नही मानता,
इसका नही परिणाम जानता।
वही हुआ था, जिसका डर था,
अब मैं काँप रहा थर-थर था।
लेकिन मैं था ऐसा हीरो,
सब विषयों लाया जीरो।
अब नही खेलूँगा यह खेल,
कभी नही हूँगा मैं फेल।
आसमान में उड़ने वाली,
जो करती थी सैर निराली।
मैंने उसे फाड़ डाला है,
छत पर लगा दिया ताला है।
मित्रों! मेरी बात मान लो,
अपने मन में आज ठान लो।
पुस्तक लेकर ज्ञान बढ़ाओ।
थोड़ा-थोड़ा पतंग उड़ाओ।।
(चित्र गूगल खोज से साभार) |
बहुत सुंदर पतंग!
जवाब देंहटाएंपुस्तक लेकर ज्ञान बढ़ाओ।
जवाब देंहटाएंथोड़ा-थोड़ा पतंग उड़ाओ.nice
ha ha bahut bhadiya rachana..!!
जवाब देंहटाएंबहुत सही शिक्षा....खेल के साथ पढ़ना भी ज़रूरी है...
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