कल मेरे पौत्र प्राञ्जल की
14वीं वर्षगाँठ थी! इस अवसर पर प्रिय प्राञ्जल को दिल की गहराइयों से शुभकामनाएँ और आशीर्वाद! -- रचा-बसा था उस समय, होली का त्यौहार। पौत्ररत्न के रूप में, मिला हमें उपहार।। -- जन्मदिवस पर आपको, देते हम आशीष। पढ़-लिखकर बन जाइए, जल्दी से वागीश।।
रोज सुबह सन्देश आपका, जब हमको मिल जाता है।
मन-उपवन का हर कोना, तब खिलकर मुस्काता है।।
जीवन कैसे जियें? यही सच्चे साथी सिखलाते हैं।
मर्म कर्म का हमें, हमारे शुभचिन्तक बतलाते हैं।
साथी पथ पर बढ़ने की जब सच्ची राह दिखाता है।
मन-उपवन का हर कोना, तब खिलकर मुस्काता है।।
दूर देश से आयी तितली, सोई कली जनाने को,
उठो सवेरा हुआ-समेटो उगते हुए खज़ाने को,
कलिकाओं को सुमन बनाने को, भँवरा मंडराता है।
मन-उपवन का हर कोना, तब खिलकर मुस्काता है।।
बाँटो प्यार सभी को, ये जीवन तो बहुत जरा सा है,
अमृत पाने की, सबके मन में होती अभिलाषा है,
लेकिन जिसने पिया गरल, वो महादेव कहलाता है।
मन-उपवन का हर कोना, तब खिलकर मुस्काता है।।
जब हम आते हैं दुनिया में, सभी बधायी देते हैं,
अनजानी सी मूरत में, हम बचपन को पा लेते हैं,
खुशियों का परिवेश, जगत में सबको बहुत सुहाता है।
मन-उपवन का हर कोना, तब खिलकर मुस्काता है।।
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06 मार्च, 2013
" प्राञ्जल की 14वीं वर्षगाँठ" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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