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06 मार्च, 2013

" प्राञ्जल की 14वीं वर्षगाँठ" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

कल मेरे पौत्र प्राञ्जल की 
14वीं वर्षगाँठ थी!

इस अवसर पर प्रिय प्राञ्जल को
दिल की गहराइयों से 
शुभकामनाएँ और आशीर्वाद!
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रचा-बसा था उस समय, होली का त्यौहार।
पौत्ररत्न के रूप में, मिला हमें उपहार।।
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जन्मदिवस पर आपको, देते हम आशीष।
पढ़-लिखकर बन जाइए, जल्दी से वागीश।।
रोज सुबह सन्देश आपका, जब हमको मिल जाता है।
मन-उपवन का हर कोनातब खिलकर मुस्काता है।।

जीवन कैसे जियेंयही सच्चे साथी सिखलाते हैं।
मर्म कर्म का हमेंहमारे शुभचिन्तक बतलाते हैं।
साथी पथ पर बढ़ने की जब सच्ची राह दिखाता है।
मन-उपवन का हर कोनातब खिलकर मुस्काता है।।

दूर देश से आयी तितलीसोई कली जनाने को,
उठो सवेरा हुआ-समेटो उगते हुए खज़ाने को,
कलिकाओं को सुमन बनाने कोभँवरा मंडराता है।
मन-उपवन का हर कोनातब खिलकर मुस्काता है।।

बाँटो प्यार सभी कोये जीवन तो बहुत जरा सा है,
अमृत पाने कीसबके मन में होती अभिलाषा है,
लेकिन जिसने पिया गरलवो महादेव कहलाता है।
मन-उपवन का हर कोनातब खिलकर मुस्काता है।।

जब हम आते हैं   दुनिया मेंसभी बधायी देते हैं,
अनजानी सी मूरत मेंहम बचपन को पा लेते हैं,
खुशियों का परिवेशजगत में सबको बहुत सुहाता है।
मन-उपवन का हर कोनातब खिलकर मुस्काता है।।