ठण्डी-ठण्डी हवा खिलाये। इसी लिए कूलर कहलाये।। जब जाड़ा कम हो जाता है। होली का मौसम आता है।। फिर चलतीं हैं गर्म हवाएँ। यही हवाएँ लू कहलायें।। तब यह बक्सा बड़े काम का। सुख देता है परम धाम का।। कूलर गर्मी हर लेता है। कमरा ठण्डा कर देता है।। चाहे घर हो या हो दफ्तर। सजा हुआ है यह खिड़की पर।। इसकी महिमा अपरम्पार। यह ठण्डक का है भण्डार।। जब आता है मास नवम्बर। बन्द सभी हो जाते कूलर।। (चित्र गूगल सर्च से साभार) |
यह ब्लॉग खोजें
28 अप्रैल, 2010
‘‘कूलर’’ (डा. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
25 अप्रैल, 2010
“महाकुम्भ-मेला” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
महाकुम्भ-स्नान हरिद्वार, उज्जैन, प्रयाग। नासिक के जागे हैं भाग।। बहुत बड़ा यहाँ लगता मेला। लोगों का आता है रेला।। सुर-सरिता के पावन तट पर। सभी लगाते डुबकी जी भर।। बारह वर्ष बाद जो आता। महाकुम्भ है वो कहलाता।। भक्त बहुत इसमें जाते हैं। साधू-सन्यासी आते हैं।। जन-मन को हर्षाने वाला। श्रद्धा का यह पर्व निराला।। (चित्र गूगल सर्च से साभार) |
21 अप्रैल, 2010
“बाल कविता:समीर लाल (उड़नतश्तरी)”
गर्मी की छुट्टी कर ली हमने खूब पढ़ाई पढ़कर के आँखें खुजलाई लिखी परीक्षा मेहनत कर के तब गर्मी की छुट्टी आई. अब होगा बस खेल तमाशा सुबह शाम को धूम धमाका सब बच्चे घर में खेलेंगे धूप भला हम क्यूँ झेलेंगे.. पापा संग जा कुल्फी खाई जब गर्मी की छुट्टी आई. दिन भर खूब कहानी पढ़ते आपस में हम नहीं झगड़ते कार्टून टी.वी. पर आया बच्चों ने मन को बहलाया.. मौसी हमसे मिलने आई जब गर्मी की छुट्टी आई. दीदी से कम्प्यूटर सीखा हमें लगा वो स्वप्न सरीखा पलक झपकते सब बतलाता दुनिया भर की सैर कराता.. समय उड़ा बन हवा हवाई जब गर्मी की छुट्टी आई. -समीर लाल ’समीर’ |
16 अप्रैल, 2010
“लैपटॉप” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
“लैपटॉप” इस बस्ते में क्या है भइया, हमें खोल कर दिखलाओ! कहाँ चले तुम इसको लेकर, कुछ हमको भी बतलाओ!! इसमें प्यारा लैपटॉप है, छोटा सा है कम्प्यूटर! नये जमाने का इसको ही, हम तो कहते हैं ट्यूटर!! जो कुछ डेस्कटॉप में होता, वही सभी कुछ है इसमें! चाहे कहीं इसे ले जाओ, यही खूबियाँ हैं इसमें!! अगर घूमने जाओ पार्क में, संग इसे भी ले जाओ! रेल और बस में जाओ तो, इससे इण्टरनेट चलाओ!! गाना सुनने का यदि मन हो, मनचाहा तुम गीत सुनो! देशी और विदेशी चाहे, कैसा भी संगीत सुनो!! इसमें छोटा माउस-पैड है, सुन्दर सा की-बोर्ड बना है! यह खिलौना बहुत सलोना, मुझको इससे प्यार घना है!! |
14 अप्रैल, 2010
“नानी जी का घर” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
मई महीना आता है और, जब गर्मी बढ़ जाती है। नानी जी के घर की मुझको, बेहद याद सताती है।। तब मैं मम्मी से कहती हूँ, नानी के घर जाना है। नानी के प्यारे हाथों से, आइसक्रीम भी खाना है।। कथा-कहानी मम्मी तुम तो, मुझको नही सुनाती हो। नानी जैसे मीठे स्वर में, गीत कभी नही गाती हो।। मेरी नानी मेरे संग में, दिन भर खेल खेलतीं है। मेरी नादानी-शैतानी, हँस-हँस रोज झेलतीं हैं।। मास-दिवस गिनती हैं नानी, आस लगाये रहती हैं। प्राची-बिटिया को ले आओ, वो नाना से कहती हैं।। |
11 अप्रैल, 2010
“पेंसिल” (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
रंग-बिरंगी पेंसिलें तो, हमको खूब लुभाती हैं। ये ही हमसे ए.बी.सी.डी., क.ख.ग. लिखवाती हैं।। रेखा-चित्र बनाना, इनके बिना असम्भव होता है। कला बनाना भी तो, केवल इनसे सम्भव होता है।। गल्ती हो जाये तो, लेकर रबड़ तुरन्त मिटा डालो। गुणा-भाग करना चाहो तो, बस्ते में से इसे निकालो।। छोटी हो या बड़ी क्लास, ये काम सभी में आती है। इसे छीलते रहो कटर से, यह चलती ही जाती है।। तख्ती,कलम,स्लेट का, तो इसने कर दिया सफाया है। बदल गया है समय पुराना, नया जमाना आया है।। (चित्र गूगल सर्च से साभार) |
06 अप्रैल, 2010
“बिन वेतन का चौकीदार” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”
“आज मैं अपने कुत्ते “टॉम” को
कंघी कर रहा था तो
सरस पायस के सम्पादक
श्री रावेंद्रकुमार रवि ने
इसके ये प्यारे-प्यारे चित्र
मेरे कैमरे में कैद कर ही दिये!”
04 अप्रैल, 2010
‘‘हमारा सूरज’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘‘मयंक’’)
नही किसी से भेद-भाव और वैर कभी रखता है,
सूर्य उदय होने पर जीवों में जीवन आता है, |