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29 मई, 2010

“सूरज-चन्दा:श्रीमती संगीता स्वरूप”

"सूरज चाचा-चन्दा मामा"


सूरज चाचा , सूरज चाचा
जैसे  ही  तुम  आते  हो
नयी  सुबह की  नयी किरण को
अपने  संग  में लाते हो  |

फूलों से उपवन  भर जाता
भौंरे  गुनगुन  गाते हैं
चिड़ियों  का कलरव सुनते ही
झट बच्चे  उठ जाते  हैं  |

चाचा जब  तुम आते हो
मामा  तब घर को जाते हैं
तुम तो काम बहुत देते  हो

मामा  हमें सुलाते हैं  |

26 मई, 2010

“आम रसीले मन को भाये” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

सरदी भागी, गरमी आई!
पेड़ों पर हरियाली छाई!! 
वासन्ती मौसम गदराया!
वृक्ष आम का है बौराया!!
0 बागों में कोयलिया बोली!
कानों में मिश्री सी घोली!!
सूरज पर चढ़ गई जवानी!
अच्छा लगता शीतल पानी!!
IMG_1205लू के गरम थपेड़े खाकर!
आम झूलते हैं पेड़ों पर!!
Playing in the Rainमानसून की बदली छाई!
छम-छम जल की बूँदें आई!!
आम रसीले मन को भाये!
हमने बड़े मजे से खाये!!

20 मई, 2010

“तितली रानी” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

"नन्हे सुमन का 50वाँ पुष्प"


तितली रानी, तितली रानी!
तुमने क्या है मन में ठानी!!


उड़कर दूर देश से आई!
लगता है लग गई थकाई!!


सुस्ताने को हाथ मिला है!
मुझे तुम्हारा साथ मिला है!!
IMG_1197तुम रंगों का भरा समन्दर!
पंख तुम्हारे लगते सुन्दर!!


चलो तुम्हें मैं ले जाता हूँ!
थोड़ा पानी पिलवाता हूँ!!


ताजादम जब हो जाओगी!
पंख हिलाती उड़ जाओगी!!

16 मई, 2010

“खरबूजे का मौसम आया” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

पिकनिक करने का मन आया!
मोटर में सबको बैठाया!!
family_car_250पहुँच गये जब नदी किनारे!
खरबूजे के खेत निहारे!!
_44621951_07melon_afp ककड़ी, खीरा और तरबूजे!
कच्चे-पक्के थे खरबूजे!!
prachi&pranjalप्राची, किट्टू और प्रांजल!
करते थे जंगल में मंगल!!

लो मैं पेटी में भर लाया!
खरबूजों का मौसम आया!! 
rcmelonदेख पेड़ की शीतल छाया!
हमने आसन वहाँ बिछाया!!
picknicजम करके खरबूजे खाये!
शाम हुई घर वापिस आये!!

13 मई, 2010

“लीची के गुच्छे मन भाए!” (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

हरी, लाल और पीली-पीली!
बिकती लीची बहुत रसीली!!

IMG_1175
गुच्छा प्राची के मन भाया!
उसने उसको झट कब्जाया!!

IMG_1178 लीची को पकड़ा, दिखलाया!
भइया को उसने ललचाया!!

IMG_1179प्रांजल के भी मन में आया!
सोचा इसको जाए खाया!!

IMG_1180गरमी का मौसम आया है!
लीची के गुच्छे लाया है!!

IMG_1177दोनों ने गुच्छे लहराए!
लीची के गुच्छे मन भाए!!

09 मई, 2010

‘‘बगुला भगत’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)


बगुला भगत बना है कैसा?
लगता एक तपस्वी जैसा।।


अपनी धुन में अड़ा हुआ है।
एक टाँग पर खड़ा हुआ है।।


धवल दूध सा उजला तन है।
जिसमें बसता काला मन है।।


मीनों के कुल का घाती है।
नेता जी का यह नाती है।।


बैठा यह तालाब किनारे।
छिपी मछलियाँ डर के मारे।।


पंख कभी यह नोच रहा है।
आँख मूँद कर सोच रहा है।।


मछली अगर नजर आ जाये।
मार झपट्टा यह खा जाये।।


इसे देख धोखा मत खाना।
यह ढोंगी है जाना-माना।।

(चित्र गूगल सर्च से साभार)

06 मई, 2010

‘‘उल्लू’’ (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)


उल्लू का रंग-रूप निराला।
लगता कितना भोला-भाला।।

अन्धकार इसके मन भाता।
सूरज इसको नही सुहाता।।

यह लक्ष्मी जी का वाहक है।
धन-दौलत का संग्राहक है।।

इसकी पूजा जो है करता।
ये उसकी मति को है हरता।।

धन का रोग लगा देता यह।
सुख की नींद भगा देता यह।।

सबको इसके बोल अखरते।
बड़े-बड़े इससे हैं डरते।।

विद्या का वैरी कहलाता।
ये बुद्धू का है जामाता।।

पढ़-लिख कर ज्ञानी बन जाना।
कभी न उल्लू तुम कहलाना।।

(चित्र गूगल सर्च से साभार)

04 मई, 2010

"सुमन हमें सिखलाते हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री मयंक)

“शिक्षाप्रद बाल-कविता”


काँटों में पलना जिनकी,
किस्मत का लेखा है।
फिर भी उनको खिलते,
मुस्काते हमने देखा है।।

कड़ी घूप हो सरदी या,

बारिस से मौसम गीला हो।
पर गुलाब हँसता ही रहता,
चाहे काला, पीला हो।।

ये उपवन में हँसकर,
भँवरों के मन को बहलाते हैं।
दुख में कभी न विचलित होना,
सुमन हमें सिखलाते हैं।।

(चित्र गूगल सर्च से साभार)