कभी झगड़ते हैं आपस में, कभी दोस्त बन जाते हैं। मन में मैल नहीं रखते जो, वो बच्चे कहलाते हैं।। तन से चंचल, भोले-भाले, नित्य दिखाते खेल निराले, किस्से-कथा-कहानी में जो, जिज्ञासा दिखलाते हैं। मन में मैल नहीं रखते जो, वो बच्चे कहलाते हैं।। कुत्ता-बिल्ली, गैया-बकरी, चिड़िया अच्छी लगती है, रोज नया कुछ करने की, मन में अभिलाषा जगती है, मीठी-मीठी बातों से ये, सबका मन बहलाते हैं। मन में मैल नहीं रखते जो, वो बच्चे कहलाते हैं।। बच्चे घर की हैं फुलवारी, बच्चों की है शान निराली, जाति-पाति और छुआ-छूत ये, कभी नहीं अपनाते हैं। मन में मैल नहीं रखते जो, वो बच्चे कहलाते हैं।। |
यह ब्लॉग खोजें
28 अप्रैल, 2012
"सबका मन बहलाते हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
सदस्यता लें
संदेश (Atom)