नई दिल्ली से प्रकाशित होने वाले
दैनिक समाचार पत्र "नेशनल दुनिया" में मेरी बाल कविता "गुब्बारे"
बच्चों को लगते जो प्यारे।
वो कहलाते हैं गुब्बारे।।
गलियों, बाजारों, ठेलों में।
गुब्बारे बिकते मेलों में।।
काले, लाल, बैंगनी, पीले।
कुछ हैं हरे, बसन्ती, नीले।।
पापा थैली भर कर लाते।
जन्म-दिवस पर इन्हें सजाते।।
फूँक मार कर इन्हें फुलाओ।
हाथों में ले इन्हें झुलाओ।।
सजे हुए हैं कुछ दुकान में।
कुछ उड़ते हैं आसमान में।।
मोहक छवि लगती है प्यारी।
गुब्बारों की महिमा न्यारी।।
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24 सितंबर, 2014
"नेशनल दुनिया में मेरी बालकविता-गुब्बारे" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
08 अगस्त, 2014
"गुब्बारों की महिमा न्यारी" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
बच्चों
को लगते जो प्यारे।
वो
कहलाते हैं गुब्बारे।।
गलियों, बाजारों, ठेलों में।
गुब्बारे
बिकते मेलों में।।
काले, लाल, बैंगनी, पीले।
कुछ
हैं हरे,
बसन्ती, नीले।।
पापा
थैली भर कर लाते।
जन्म-दिवस
पर इन्हें सजाते।।
फूँक
मार कर इन्हें फुलाओ।
हाथों
में ले इन्हें झुलाओ।।
सजे
हुए हैं कुछ दुकान में।
कुछ
उड़ते हैं आसमान में।।
मोहक
छवि लगती है प्यारी।
गुब्बारों
की महिमा न्यारी।।
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06 जुलाई, 2014
"मीठे-मीठे और रसीले" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
आमों के बागों में जाकर,
आम टोकरी भरकर लाया!
घर के लोगों ने जी भरकर,
चूस-चूस कर इनको खाया!!
प्राची बिटिया और प्रांजल,
बड़े चाव से इनको खाते!
मीठे-मीठे और रसीले,
आम बहुत सबको हैं भाते!!
राज-दुलारो, नन्हे-मुन्नों,
कल मुझको तुम भूल न जाना!
जब मैं बूढ़ा हो जाऊँगा,
इसी तरह तुम मुझे खिलाना!!
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25 जून, 2014
"मधुमक्खी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
24 जून, 2014
"आज से ब्लॉगिंग बन्द" (डॉ. रूपचंद्र शास्त्री 'मयंक')
मित्रों।
फेस बुक पर मेरे मित्रों में एक श्री केवलराम भी हैं।
उन्होंने मुझे चैटिंग में आग्रह किया कि उन्होंने एक ब्लॉगसेतु के नाम से एग्रीगेटर बनाया है। अतः आप उसमें अपने ब्लॉग जोड़ दीजिए।
मैेने ब्लॉगसेतु का स्वागत किया और ब्लॉगसेतु में अपने ब्लॉग जोड़ने का प्रयास भी किया। मगर सफल नहीं हो पाया। शायद कुछ तकनीकी खामी थी।
श्री केवलराम जी ने फिर मुझे याद दिलाया तो मैंने अपनी दिक्कत बता दी।
इन्होंने मुझसे मेरा ईमल और उसका पासवर्ड माँगा तो मैंने वो भी दे दिया।
इन्होंने प्रयास करके उस तकनीकी खामी को ठीक किया और मुझे बता दिया कि ब्लॉगसेतु के आपके खाते का पासवर्ड......है।
मैंने चर्चा मंच सहित अपने 5 ब्लॉगों को ब्लॉग सेतु से जोड़ दिया।
ब्लॉगसेतु से अपने 5 ब्लॉग जोड़े हुए मुझे 5 मिनट भी नहीं बीते थे कि इन महोदय ने कहा कि आप ब्लॉग मंच को ब्लॉग सेतु से हटा लीजिए।
मैंने तत्काल अपने पाँचों ब्लॉग ब्लॉगसेतु से हटा लिए।
अतः बात खत्म हो जानी चाहिए थी।
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कुछ दिनों बाद मुझे मेल आयी कि ब्लॉग सेतु में ब्लॉग जोड़िए।
मैंने मेल का उत्तर दिया कि इसके संचालक भेद-भाव रखते हैं इसलिए मैं अपने ब्लॉग ब्लॉग सेतु में जोड़ना नहीं चाहता हूँ।
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बस फिर क्या था श्री केवलराम जी फेसबुक की चैटिंग में शुरू हो गये।
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यदि मुझसे कोई शिकायत थी तो मुझे बाकायदा मेल से सूचना दी जानी चाहिए थी । लेकिन ऐसा न करके इन्होंने फेसबुक चैटिंग में मुझे अप्रत्यक्षरूप से धमकी भी दी।
एक बानगी देखिए इनकी चैटिंग की....
"Kewal Ram
आदरणीय शास्त्री जी
जैसे कि आपसे संवाद हुआ था और आपने यह कहा था कि आप मेल के माध्यम से उत्तर दे देंगे लेकिन आपने अभी तक कोई मेल नहीं किया
जिस तरह से बिना बजह आपने बात को सार्जनिक करने का प्रयास किया है उसका मुझे बहुत खेद है
ब्लॉग सेतु टीम की तरफ से फिर आपको एक बार याद दिला रहा हूँ
कि आप अपनी बात का स्पष्टीकरण साफ़ शब्दों में देने की कृपा करें
कोई गलत फहमी या कोई नाम नहीं दिया जाना चाहिए
क्योँकि गलत फहमी का कोई सवाल नहीं है
सब कुछ on record है
इसलिए आपसे आग्रह है कि आप अपन द्वारा की गयी टिप्पणी के विषय में कल तक स्पष्टीकरण देने की कृपा करें 24/06/2014
7 : 00 AM तक
अन्यथा हमें किसी और विकल्प के लिए बाध्य होना पडेगा
जिसका मुझे भी खेद रहेगा
अपने **"
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ब्लॉग सेतु के संचालकों में से एक श्री केवलराम जी ने मुझे कानूनी कार्यवाही करने की धमकी देकर इतना बाध्य कर दिया कि मैं ब्लॉगसेतु के संचालकों से माफी माँगूँ।
जिससे मुझे गहरा मानसिक आघात पहुँचा है।
इसलिए मैं ब्लॉगसेतु से क्षमा माँगता हूँ।
साथ ही ब्लॉगिंग भी छोड़ रहा हूँ। क्योंकि ब्लॉग सेतु की यही इच्छा है कि जो ब्लॉगर प्रतिदिन अपना कीमती समय लगाकर हिन्दी ब्लॉगिंग को समृद्ध कर रहा है वो आगे कभी ब्लॉगिंग न करे।
मैंने जीवन में पहला एग्रीगेटर देखा जिसका एक संचालक बचकानी हरकत करता है और फेसबुक पर पहल करके चैटिंग में मुझे हमेशा परेशान करता है।
उसका नाम है श्री केवलराम, हिन्दी ब्लॉगिंग में पी.एचडी.।
इस मानसिक आघात से यदि मुझे कुछ हो जाता है तो इसकी पूरी जिम्मेदारी ब्लॉगसेतु और इससे जुड़े श्री केवलराम की होगी।
आज से ब्लॉगिंग बन्द।
और इसका श्रेय ब्लॉगसेतु को।
जिसने मुझे अपना कीमती समय और इंटरनेट पर होने वाले भारी भरकम बिल से मुक्ति दिलाने में मेरी मदद की।
धन्यवाद।
डॉ. रूपचंद्र शास्त्री "मयंक"
20 जून, 2014
"गैस सिलेण्डर है वरदान" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मेरी बालकृति नन्हें सुमन से
एक बालकविता
"गैस सिलेण्डर है वरदान"
गैस सिलेण्डर कितना प्यारा।
मम्मी की आँखों का तारा।।
रेगूलेटर अच्छा लाना।
सही ढंग से इसे लगाना।।
गैस सिलेण्डर है वरदान।
यह रसोई-घर की है शान।।
दूघ पकाओ-चाय बनाओ।
मनचाहे पकवान बनाओ।।
बिजली अगर नहीं है घर में।
यह प्रकाश देता पल भर में।।
बाथरूम में इसे लगाओ।
गर्म-गर्म पानी को पाओ।।
बीत गया है वक्त पुराना।
अब आया है नया जमाना।।
कण्डे-लकड़ी अब मत लाना।
बड़ा सहज है गैस जलाना।।
किन्तु सुरक्षा को अपनाना।
इसे कार में नही लगाना।
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10 जून, 2014
"मेरा झूला" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मेरी बालकृति नन्हें सुमन से
एक बालकविता
"मेरा झूला"
मम्मी जी ने इसको डाला।
मेरा झूला बडा़ निराला।।
खुश हो जाती हूँ मैं कितनी,
जब झूला पा जाती हूँ।
होम-वर्क पूरा करते ही,
मैं इस पर आ जाती हूँ।
करता है मन को मतवाला।
मेरा झूला बडा़ निराला।।
मुझको हँसता देख,
सभी खुश हो जाते हैं।
बाबा-दादी, प्यारे-प्यारे,
नये खिलौने लाते हैं।
आओ झूलो, मुन्नी-माला।
मेरा झूला बडा़ निराला।।
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28 मई, 2014
"इसे मदारी खूब नचाता" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
21 मई, 2014
"देखो एक मदारी आया" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मेरी बालकृति "नन्हें सुमन" से
एक बाल कविता "देखो एक मदारी आया" देखो एक मदारी आया। अपने संग लाठी भी लाया।। डम-डम डमरू बजा रहा है। भालू, बन्दर नचा रहा है।। लम्बे काले बालों वाला। भालू का अन्दाज निराला।। खेल अनोखे दिखलाता है। बच्चों के मन को भाता है।। वानर है कितना शैतान। पकड़ रहा भालू के कान।। यह अपनी धुन में ऐँठा है। भालू के ऊपर बैठा है।। लिए कटोरा पेट दिखाता। माँग-माँग कर पैसे लाता।। |
17 मई, 2014
"बिल्ली मौसी क्यों इतना गुस्सा खाती हो" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मेरी बालकृति "नन्हें सुमन" से
एक बाल कविता "बिल्ली मौसी क्यों इतना गुस्सा खाती हो" बिल्ली मौसी बिल्ली मौसी, क्यों इतना गुस्सा खाती हो। कान खड़ेकर बिना वजह ही, रूप भयानक दिखलाती हो।। मैं गणेश जी का वाहन हूँ, मैं दुनिया में भाग्यवान हूँ।। चाल समझता हूँ सब तेरी, गुणी, चतुर और ज्ञानवान हूँ। छल और कपट भरा है मन में, धोखा क्यों जग को देती हो? मैं नही झाँसे में आऊँगा, आँख मूँद कर क्यों बैठी हो? |
09 मई, 2014
"खरबूजे का मौसम आया" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
मेरी बालकृति "नन्हें सुमन" से
एक बालकविता
"खरबूजों का मौसम आया"
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