हम बच्चों के जन्मदिवस को, धूम-धाम से आप मनातीं। रंग-बिरंगे गुब्बारों से, पूरे घर को आप सजातीं।। आज मिला हमको अवसर ये, हम भी तो कुछ कर दिखलाएँ। दादी जी के जन्मदिवस को, साथ हर्ष के आज मनाएँ।। अपने नन्हें हाथों से हम, तुमको देंगे कुछ उपहार। बदले में हम माँग रहे हैं, दादी से प्यार अपार।। अपने प्यार भरे आँचल से, दिया हमें है साज-सम्भाल। यही कामना हम बच्चों की दादी जियो हजारों साल।। |
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30 सितंबर, 2011
"दादी जियो हजारों साल" (प्रांजल-प्राची)
23 सितंबर, 2011
" बिजली कड़की पानी आया" ( डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
उमड़-घुमड़ कर बादल आये।
घटाटोप अँधियारा लाये।।
काँव-काँव कौआ चिल्लाया।
लू-गरमी का हुआ सफाया।।
मोटी जल की बूँदें आईं।
आँधी-ओले संग में लाईं।।
धरती का सन्ताप मिटाया।
बिजली कड़की पानी आया।।
लगता है हमको अब ऐसा।
मई बना चौमासा जैसा।।
पेड़ों पर लीची हैं झूली।
बगिया में अमिया भी फूली।।
आम और लीची घर लाओ।
जमकर खाओ, मौज मनाओ।।
19 सितंबर, 2011
"यह है अपना सच्चा भारत" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
♥ यह है अपना सच्चा भारत ♥
सुन्दर-सुन्दर खेत हमारे।
बाग-बगीचे प्यारे-प्यारे।।
पर्वत की है छटा निराली।
चारों ओर बिछी हरियाली।।
सूरज किरणें फैलाता है।
छटा अनोखी बिखराता है।।
तम हट जाता, जग जगजाता।
जन दिनचर्या में लग जाता।।
चहक उठे हैं घर-चौबारे।
महक उठे कच्चे-गलियारे।।
गइया जंगल चरने जाती।
हरी घास मन को ललचाती।।
नहीं बनावट, नहीं प्रदूषण।
यहाँ सरलता है आभूषण।।
खड़ी हुई मजबूत इमारत।
यह है अपना सच्चा भारत।।
07 सितंबर, 2011
"रंग-बिरंगे छाते" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
धूप और बारिश से,
जो हमको हैं सदा बचाते।
छाया देने वाले ही तो,
कहलाए जाते हैं छाते।।
आसमान में जब घन छाते,
तब ये हाथों में हैं आते।
रंग-बिरंगे छाते ही तो,
हम बच्चों के मन को भाते।।
तभी अचानक आसमान से,
04 सितंबर, 2011
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