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27 अप्रैल, 2014

"बाल कविता-तरबूज" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

मेरी बालकृति "नन्हें सुमन" से
 एक बालकविता
"तरबूज"
 
जब गरमी की ऋतु आती है!
लू तन-मन को झुलसाती है!!

तब आता तरबूज सुहाना!
ठण्डक देता इसको खाना!!
watermelons-5556 
यह बाजारों में बिकते हैं!
फुटबॉलों जैसे दिखते हैं!!

एक रोज मन में यह ठाना!
देखें इनका ठौर-ठिकाना!!
 
पहुँचे जब हम नदी किनारे!
बेलों पर थे अजब नजारे!!

कुछ छोटे कुछ बहुत बड़े थे!
जहाँ-तहाँ तरबूज पड़े थे!!
 Watermelon field prachi
इनमें से था एक उठाया!
बैठ खेत में इसको खाया!!
 Watermelon
इसका गूदा लाल-लाल था!
ठण्डे रस का भरा माल था!!

23 अप्रैल, 2014

"बालकविता-मोबाइल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

मेरी बालकृति "नन्हें सुमन" से

बाल कविता
मोबाइल

mobile 
पापा ने दिलवाया मुझको,
सेल-फोन इक प्यारा सा।
मन-भावन रंगों वाला,
यह एक खिलौना न्यारा सा।।

रोज सुबह को मुझे जगाता,
मोबाइल कहलाता है।
दूर-दूर तक बात कराता,
सही समय बतलाता है।।

नम्बर डायल करो किसी का,
पता-ठिकाना बतलाओ।
मुट्ठी में इसको पकड़ो और,
संग कहीं भी ले जाओ।।

इससे नेट चलाओ चाहे,
बात करो दुनिया भर में।
यह सबके मन को भाता है,
लोकलुभावन घर-घर में।।

बटन दबाते ही मोबाइल,
काम टार्च का देता है।
पलक झपकते ही यह सारा,
अंधियारा हर लेता है।।

सेल-फोन इस युग का,
इक छोटा सा है कम्प्यूटर।
गुणा-भाग करने वाला,
बन जाता कैल-कुलेटर।।

19 अप्रैल, 2014

"मेरी गइया" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

मेरी बालकृति "नन्हें सुमन" से
एक बालकविता 
"मेरी गइया"
मेरी गइया बहुत निराली
सीधी-सादीभोली-भाली।

सुबह हुई गइया रम्भाई,
मेरा दूध निकालो भाई।

हरी घास खाने को लाना,
उसमें भूसा नहीं मिलाना।

इसका बछड़ा बहुत सलोना,
प्यारा-सा वह एक खिलौना।

मैं जब गइया दुहने जाता,
वह "अम्माँ" कहकर चिल्लाता।

सारा दूध नहीं दुह लेना,
मुझको भी कुछ पीने देना।

थोड़ा ही ले जाना भइया,
सीधी-सादी मेरी मइया।

15 अप्रैल, 2014

"शिशु कविता-चले देखने मेला" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

मेरी बालकृति "नन्हें सुमन" से
एक शिशुकविता 
"चले देखने मेला"
हाथी दादा सूँड उठाकर
चले देखने मेला! 

बंदर मामा साथ हो लिया
बनकर उनका चेला!
चाट-पकौड़ी ख़ूब उड़ाई
देख चाट का ठेला!
बहुत मज़े से फिर दोनों ने
जमकर खाया केला!

फिर आपस में दोनों बोले,
अच्छा लगा बहुत मेला!

जंगल में सबको बतलाया,
देखा हमने मेला!

11 अप्रैल, 2014

"कितना भारी मेरा बस्ता" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

मेरी बालकृति "नन्हें सुमन" से
"मेरा बस्ता"
 
मेरा बस्ता कितना भारी।
बोझ उठाना है लाचारी।।

मेरा तो नन्हा सा मन है।
छोटी बुद्धि दुर्बल तन है।।

पढ़नी पड़ती सारी पुस्तक।
थक जाता है मेरा मस्तक।।

रोज-रोज विद्यालय जाना।
बड़ा कठिन है भार उठाना।।

कम्प्यूटर का युग अब आया।
इसमें सारा ज्ञान समाया।।

मोटी पोथी सभी हटा दो।
बस्ते का अब भार घटा दो।।

थोड़ी कॉपीपेन चाहिए।
हमको मन में चैन चाहिए।।

कम्प्यूटर जी पाठ पढ़ायें।
हम बच्चों का ज्ञान बढ़ाये।

इतने से चल जाये काम।
छोटा बस्ता हो आराम।।

07 अप्रैल, 2014

"मीठा राग सुनाती हो" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

मेरी बालकृति "नन्हें सुमन" से
"मीठा राग सुनाती हो"
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चिड़िया रानी फुदक-फुदक कर,
मीठा राग सुनाती हो।
आनन-फानन में उड़ करके,
आसमान तक जाती हो।।

मेरे अगर पंख होते तो,
मैं भी नभ तक हो आता।
पेड़ो के ऊपर जा करके,
ताजे-मीठे फल खाता।।

जब मन करता मैं उड़ कर के,
नानी जी के घर जाता।
आसमान में कलाबाजियाँ कर के,
सबको दिखलाता।।

सूरज उगने से पहले तुम,
नित्य-प्रति उठ जाती हो।
चीं-चीं, चूँ-चूँ वाले स्वर से ,
मुझको रोज जगाती हो।।

तुम मुझको सन्देशा देती,
रोज सवेरे उठा करो।
अपनी पुस्तक को ले करके,
पढ़ने में नित जुटा करो।।

चिड़िया रानी बड़ी सयानी,
कितनी मेहनत करती हो।
एक-एक दाना बीन-बीन कर,
पेट हमेशा भरती हो।।

अपने कामों से मेहनत का,
पथ हमको दिखलाती हो।।
जीवन श्रम के लिए बना है,
सीख यही सिखलाती हो।

03 अप्रैल, 2014

"लिखना-पढ़ना सिखला दो" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

मेरी बालकृति "नन्हें सुमन" से
बालकविता
"लिखना-पढ़ना सिखला दो"
भैया! मुझको भी,
लिखना-पढ़ना, सिखला दो।
क.ख.ग.घ, ए.बी.सी.डी,
गिनती भी बतला दो।।

पढ़ लिख कर मैं,
मम्मी-पापा जैसे काम करूँगी।
दुनिया भर में,
बापू जैसा अपना नाम करूँगी।।

रोज-सवेरे, साथ-तुम्हारे,
मैं भी उठा करूँगी।
पुस्तक लेकर पढ़ने में,
मैं संग में जुटा करूँगी।।

बस्ता लेकर विद्यालय में,
मुझको भी जाना है।
इण्टरवल में टिफन खोल कर,
खाना भी खाना है।।

छुट्टी में गुड़िया को,
ए.बी.सी.डी, सिखलाऊँगी।
उसके लिए पेंसिल और,
इक कापी भी लाऊँगी।।