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28 अक्टूबर, 2010

"खों-खों करके बहुत डराता।" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

"बन्दर की व्यथा"

बिना सहारे और सीढ़ी के,
झटपट पेड़ों पर चढ़ जाता।
गली मुहल्लों और छतों पर,
खों-खों करके बहुत डराता।

कोई इसको वानर कहता,
कोई हनूमान बतलाता।
मानव का पुरखा बन्दर है,
यह विज्ञान हमें सिखलाता।

लाठी और डुगडुगी लेकर,
इसे मदारी खूब नचाता।
यह करतब से हमें हँसाता,
पैसा माँग-माँग कर लाता।

जंगल के आजाद जीव को,
मानव देखो बहुत सताता।
देख दुर्दशा इन जीवों की,
तरस हमें इन पर है आता।।
(चित्र गूगल छवि से साभार)

26 अक्टूबर, 2010

“सेवों का मौसम है आया!” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

IMG_2317देख-देख मन ललचाया है 
सेवों का मौसम आया है ।
कितना सुन्दर रूप तुम्हारा।
लाल रंग है प्यारा-प्यारा।। 
IMG_2314प्राची ने है एक उठाया।
खाने को है मुँह फैलाया।।
IMG_2321भइया ने दो सेव उठाये। 
दोनों हाथों में लहराये।।

प्राची कहती मत ललचाओ।
जल्दी से इनको खा जाओ।।

सेव नित्यप्रति जो खाता है।
वो ताकतवर बन जाता है।।

22 अक्टूबर, 2010

“तोते उड़ते पंख पसार!” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

GO8F7402copyLarge2नीला नभ इनका संसार।
तोते उड़ते पंख पसार।।
Parrot-BN_MR7817-w जब कोई भी थक जाता है।
वो डाली पर सुस्ताता है।।
तोता पेड़ों का बासिन्दा।
कहलाता आजाद परिन्दा।।
parrot_2खाने का सामान धरा है।
पर मन में अवसाद भरा है।।
लोहे का हो या कंचन का।
बन्धन दोनों में तन मन का।।
अत्याचार कभी मत करना।
मत इसको पिंजडे में धरना।।
totaकारावास बहुत दुखदायी।
जेल नहीं होती सुखदायी।।
मत देना इसको अवसाद।
करना तोते को आज़ाद।।
(चित्र गूगल छवियों से साभार)

15 अक्टूबर, 2010

“यह दशानन ज्ञानवान था।” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

rawana_5जो है एक शीश को ढोता।
बुद्धिमान वह कितना होता।।  

यह दशानन ज्ञानवान था।
बलशाली था और महान था।।

यह था वेद-शास्त्र का ज्ञाता।
यम तक इससे था घबराता।।

पूजा इसका नित्य कार्य था।
यह दुनिया में श्रेष्ठ आर्य था।।

किन्तु दम्भ जब इसमें आया।
इसने नीच कर्म अपनाया।।

अनाचार अब यह करता था।
सारा जग इससे डरता था।।
rama
जब इतने आतंक मचाया।
काल राम तब बनकर आया।।

रूप धरा था वनचारी का।
अन्त किया अत्याचारी का।।

जो जग से आतंक मिटाता।
वो घर-घर में पूजा जाता।।

जो पापी को देता मार।
होती उसकी जय-जयकार।।

11 अक्टूबर, 2010

“भार उठाता, गधा कहाता” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")



कितना सारा भार उठाता।
लेकिन फिर भी गधा कहाता।।
farmer-donkey-1 रोज लाद कर अपने ऊपर,
कपड़ों के गट्ठर ले जाता।
वजन लादने वाले को भी,
तरस नही इस पर है आता।।
donkey -3जिनसे घर में चूल्हा जलता,
उन लकड़ी-कण्डों को लाता।
जिनसे पक्के भवन बने हैं,
यह उन ईंटों को पहुँचाता।।
donkey_11यह सीधा-सादा प्राणी है,
घूटा और घास को खाता।
जब ढेंचू-ढेंचू करता है,
तब मालिक है मार लगाता।।

भार उठाता, गधा कहाता।
फिर भी नही किसी को भाता।।
(चित्र गूगल छवि से साभार)

07 अक्टूबर, 2010

“वानर” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

monkeycrop जंगल में कपीश का मन्दिर।
जिसमें पूजा करते बन्दर।।
monkey_2कभी यह ऊपर को बढ़ता।
डाल पकड़ पीपल पर चढ़ता।।
monkey_3ऊपर जाता, नीचे आता।
कभी न आलस इसे सताता।।


उछल-कूद वानर करता है।
बहुत कुलाँचे यह भरता है।।

01 अक्टूबर, 2010

“प्राची की कार” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

करती हूँ मैं इसको प्यार।
यह देखो प्राची की कार।।


जब यह फर्राटे भरती है,
बिल्कुल शोर नही करती है,
सिर्फ घूमते चक्के चार। 
यह देखो प्राची की कार।।


जब छुट्टी का दिन आता है,
करना सफर हमें भाता है,
हम इससे जाते हरद्वार।
यह देखो प्राची की कार।।


गीत, गजल और भजन-कीर्तन,
सुनो मजे से, जब भी हो मन,
मंजिल यह कर देती पार।
यह देखो प्राची की कार।।