बगुला भगत बना है कैसा? लगता एक तपस्वी जैसा।। अपनी धुन में अड़ा हुआ है। एक टाँग पर खड़ा हुआ है।। धवल दूध सा उजला तन है। जिसमें बसता काला मन है।। मीनों के कुल का घाती है। नेता जी का यह नाती है।। बैठा यह तालाब किनारे। छिपी मछलियाँ डर के मारे।। पंखों को यह नोच रहा है। आँख मूँद कर सोच रहा है।। मछली अगर नजर आ जाये। मार झपट्टा यह खा जाये।। इसे देख धोखा मत खाना। यह ढोंगी है जाना-माना।। |
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31 जनवरी, 2017
बालकविता "लगता एक तपस्वी जैसा" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
27 जनवरी, 2017
बालगीत "प्रकाश का पुंज हमारा सूरज" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
24 जनवरी, 2017
बालकविता "क.ख.ग. लिखवाती हैं" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
रंग-बिरंगी पेंसिलें तो, हमको खूब लुभाती हैं। ये ही हमसे ए.बी.सी.डी., क.ख.ग. लिखवाती हैं।। रेखा-चित्र बनाना, इनके बिना असम्भव होता है। कला बनाना भी तो, केवल इनसे सम्भव होता है।। गल्ती हो जाये तो, लेकर रबड़ तुरन्त मिटा डालो। गुणा-भाग करना चाहो तो, बस्ते में से इसे निकालो।। छोटी हो या बड़ी क्लास, ये काम सभी में आती है। इसे छीलते रहो कटर से, यह चलती ही जाती है।। तख्ती,कलम,स्लेट का, तो इसने कर दिया सफाया है। बदल गया है समय पुराना, नया जमाना आया है।। |
22 जनवरी, 2017
बालकविता "नानी के घर जाना है" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
मई महीना आता है और, जब गर्मी बढ़ जाती है। नानी जी के घर की मुझको, बेहद याद सताती है।। तब मैं मम्मी से कहती हूँ, नानी के घर जाना है। नानी के प्यारे हाथों से, आइसक्रीम भी खाना है।। कथा-कहानी मम्मी तुम तो, मुझको नही सुनाती हो। नानी जैसे मीठे स्वर में, गीत कभी नही गाती हो।। मेरी नानी मेरे संग में, दिन भर खेल खेलतीं है। मेरी नादानी-शैतानी, हँस-हँस रोज झेलतीं हैं।। मास-दिवस गिनती हैं नानी, आस लगाये रहती हैं। प्राची-बिटिया को ले आओ, वो नाना से कहती हैं।। |
21 जनवरी, 2017
बालगीत "मेरी प्यारी मुनिया" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
20 जनवरी, 2017
बालकविता "विद्यालय लगता है प्यारा" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
18 जनवरी, 2017
बालकविता (बालवाणी में मेरी बालकविता 'उल्लू')
उल्लू का रंग-रूप निराला।
लगता कितना भोला-भाला।।
अन्धकार इसके मन भाता।
सूरज इसको नही सुहाता।।
यह लक्ष्मी जी का वाहक है।
धन-दौलत का संग्राहक है।।
इसकी पूजा जो है करता।
ये उसकी मति को है हरता।।
धन का रोग लगा देता यह।
सुख की नींद भगा देता यह।।
सबको इसके बोल अखरते।
बड़े-बड़े इससे हैं डरते।।
विद्या का वैरी कहलाता।
ये बुद्धू का है जामाता।।
पढ़-लिख कर ज्ञानी बन जाना।
कभी न उल्लू तुम कहलाना।।
उल्लू का रंग-रूप निराला।
लगता कितना भोला-भाला।। अन्धकार इसके मन भाता। सूरज इसको नही सुहाता।। यह लक्ष्मी जी का वाहक है। धन-दौलत का संग्राहक है।। इसकी पूजा जो है करता। ये उसकी मति को है हरता।। धन का रोग लगा देता यह। सुख की नींद भगा देता यह।। सबको इसके बोल अखरते। बड़े-बड़े इससे हैं डरते।। विद्या का वैरी कहलाता। ये बुद्धू का है जामाता।। पढ़-लिख कर ज्ञानी बन जाना। कभी न उल्लू तुम कहलाना।। |
बालकविता "नौकर है यह बिना दाम का" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
बिल्ली का दुश्मन है भारी।।
बन्दर अगर इसे दिख जाता।
भौंक-भौंक कर उसे भगाता।।
उछल-उछल कर दौड़ लगाता।
बॉल पकड़ कर जल्दी लाता।।
यह सीधा-सच्चा लगता है।
बच्चों को अच्छा लगता है।।
धवल दूध सा तन है सारा।
इसका नाम फिरंगी प्यारा।।
आँखें इसकी चमकीली हैं।
भूरी सी हैं और नीली हैं।।
जग जाता है यह आहट से।
साथ-साथ चल पड़ता झट से।।
प्यारा सा पिल्ला ले आना।
सुवह शाम इसको टहलाना।।
वफादार है बड़े काम का।
नौकर है यह बिना दाम का।।
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17 जनवरी, 2017
बालकविता "अपना ऊँचा नाम करूँ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
13 जनवरी, 2017
बालकविता "गुब्बारों की महिमा न्यारी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
बच्चों को लगते जो प्यारे।
वो कहलाते हैं गुब्बारे।। गलियों, बाजारों, ठेलों में।
गुब्बारे बिकते मेलों में।।
काले, लाल, बैंगनी, पीले।
कुछ हैं हरे, बसन्ती, नीले।।
पापा थैली भर कर लाते।
जन्म-दिवस पर इन्हें सजाते।।
गलियों, बाजारों, ठेलों में।
गुब्बारे बिकते मेलों में।।
फूँक मार कर इन्हें फुलाओ।
हाथों में ले इन्हें झुलाओ।।
सजे हुए हैं कुछ दुकान में।
कुछ उड़ते हैं आसमान में।।
मोहक छवि लगती है प्यारी।
गुब्बारों की महिमा न्यारी।।
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12 जनवरी, 2017
बालकविता "गैस सिलेण्डर" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
गैस सिलेण्डर कितना
प्यारा।
मम्मी की आँखों का
तारा।।
रेगूलेटर अच्छा लाना।
सही ढंग से इसे
लगाना।।
गैस सिलेण्डर है
वरदान।
यह रसोई-घर की है
शान।।
दूघ पकाओ, चाय बनाओ।
मनचाहे पकवान बनाओ।।
बिजली अगर नही है घर
में।
यह प्रकाश देता पल भर
में।।
बाथरूम में इसे लगाओ।
गर्म-गर्म पानी से
न्हाओ।।
बीत गया है वक्त
पुराना।
अब आया है नया
जमाना।।
जंगल से लकड़ी मत
लाना।
बड़ा सहज है गैस
जलाना।।
किन्तु सुरक्षा को
अपनाना।
इसे कार में नही
लगाना।
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11 जनवरी, 2017
बालकविता "छोटा बस्ता हो आराम" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
10 जनवरी, 2017
बालकविता "सारा दूध नही दुह लेना" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
09 जनवरी, 2017
बालकविता "तितली रानी कितनी सुन्दर" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मन को बहुत लुभाने वाली, तितली रानी कितनी सुन्दर। भरा हुआ इसके पंखों में, रंगों का है एक समन्दर।। उपवन में मंडराती रहती, फूलों का रस पी जाती है। अपना मोहक रूप दिखाने, यह मेरे घर भी आती है।। भोली-भाली और सलोनी, यह जब लगती है सुस्ताने। इसे देख कर एक छिपकली, आ जाती है इसको खाने।। आहट पाते ही यह उड़ कर, बैठ गयी चौखट के ऊपर। मेरा मन भी ललचाया है, मैं भी देखूँ इसको छूकर।। इसके रंग-बिरंगे कपड़े, होली की हैं याद दिलाते। सजी धजी दुल्हन को पाकर, बच्चे फूले नही समाते।। |
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