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27 फ़रवरी, 2010
25 फ़रवरी, 2010
“आई होली! आई होली!!” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
आयी होली, आई होली। रंग-बिरंगी आई होली। ![]() मुन्नी आओ, चुन्नी आओ, रंग भरी पिचकारी लाओ, मिल-जुल कर खेलेंगे होली। रंग-बिरंगी आई होली।। ![]() मठरी खाओ, गुँजिया खाओ, पीला-लाल गुलाल उड़ाओ, मस्ती लेकर आई होली। रंग-बिरंगी आई होली।। ![]() रंगों की बौछार कहीं है, ठण्डे जल की धार कहीं है, भीग रही टोली की टोली। रंग-बिरंगी आई होली।। ![]() परसों विद्यालय जाना है, होम-वर्क भी जँचवाना है, मेहनत से पढ़ना हमजोली। रंग-बिरंगी आई होली।। |
24 फ़रवरी, 2010
“संगीता स्वरूप का बालगीतः रेल” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”
“छुक-छुक करती आई रेल!”
23 फ़रवरी, 2010
‘‘मोबाइल फोन’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
22 फ़रवरी, 2010
‘‘मेरी गैया’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
![]() मेरी गैया बड़ी निराली, सीधी-सादी, भोली-भाली। सुबह हुई काली रम्भाई, मेरा दूध निकालो भाई। हरी घास खाने को लाना, उसमें भूसा नही मिलाना। ![]() उसका बछड़ा बड़ा सलोना, वह प्यारा सा एक खिलौना। मैं जब गाय दूहने जाता, वह अम्मा कहकर चिल्लाता। सारा दूध नही दुह लेना, मुझको भी कुछ पीने देना। थोड़ा ही ले जाना भैया, सीधी-सादी मेरी मैया। (चित्र गूगल से साभार) |
21 फ़रवरी, 2010
‘‘तितली रानी’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक)
![]() मन को बहुत लुभाने वाली, तितली रानी कितनी सुन्दर। भरा हुआ इसके पंखों में, रंगों का है एक समन्दर।। उपवन में मंडराती रहती, फूलों का रस पी जाती है। अपना मोहक रूप दिखाने, यह मेरे घर भी आती है।। भोली-भाली और सलोनी, यह जब लगती है सुस्ताने। इसे देख कर एक छिपकली, आ जाती है इसको खाने।। आहट पाते ही यह उड़ कर, बैठ गयी चौखट के ऊपर। मेरा मन भी ललचाया है, मैं भी देखूँ इसको छूकर।। इसके रंग-बिरंगे कपड़े, होली की हैं याद दिलाते। सजी धजी दुल्हन को पाकर, बच्चे फूले नही समाते।। (चित्र गूगल सर्च से साभार) |
19 फ़रवरी, 2010
“भगवान एक है!" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
मन्दिर, मस्जिद और गुरूद्वारे। भक्तों को लगते हैं प्यारे।। हिन्दू मन्दिर में हैं जाते। देवताओं को शीश नवाते।। ईसाई गिरजाघर जाते। दीन-दलित को गले लगाते।। जहाँ इमाम नमाज पढ़ाता। मस्जिद उसे पुकारा जाता।। सिक्खों को प्यारे गुरूद्वारे। मत्था वहाँ टिकाते सारे।। राहें सबकी अलग-अलग हैं। पर सबके अरमान नेक है। नाम अलग हैं, पन्थ भिन्न हैं। पर जग में भगवान एक है।। (सभी चित्र गूगल से साभार) |
18 फ़रवरी, 2010
“संगीता स्वरूप का बालगीत” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
“चूहे की होली”
![]() चूहा खेल रहा था होली। रंगो की लेकर रंगोली।। भर पिचकारी उसने मारी। बिल्ली मौसी भीगी सारी।। अब बिल्ली को गुस्सा आया। उसने चूहे को धमकाया।। चूहा थर-थर काँप रहा था। डरकर माफ़ी मांग रहा था।। हंस कर तब बिल्ली ये बोली। होली है भई , है भई होली।। चूहा ये सुनकर मुस्काया। उसने लाल गुलाल उड़ाया।। दोनों ने त्यौहार मनाया। होली का हुडदंग मचाया।। ![]() (संगीता स्वरूप) |
“भैया! मुझको भी, लिखना-पढ़ना, सिखला दो!”(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
17 फ़रवरी, 2010
“बाल-गीत” (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
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16 फ़रवरी, 2010
‘‘चिड़िया रानी’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
बच्चों अर्थात् नन्हीं कलियों और सुमनों को समर्पित हैः यह “नाइस” ब्लॉग! |
![]() चिड़िया रानी फुदक-फुदक कर, मीठा राग सुनाती हो। आनन-फानन में उड़ करके, आसमान तक जाती हो।। मेरे अगर पंख होते तो, मैं भी नभ तक हो आता। पेड़ो के ऊपर जा करके, ताजे-मीठे फल खाता।। जब मन करता मैं उड़ कर के, नानी जी के घर जाता। आसमान में कलाबाजियाँ कर के, सबको दिखलाता।। सूरज उगने से पहले तुम, नित्य-प्रति उठ जाती हो। चीं-चीं, चूँ-चूँ वाले स्वर से , मुझको रोज जगाती हो।। तुम मुझको सन्देशा देती, रोज सवेरे उठा करो। अपनी पुस्तक को ले करके, पढ़ने में नित जुटा करो।। चिड़िया रानी बड़ी सयानी, कितनी मेहनत करती हो। एक-एक दाना बीन-बीन कर, पेट हमेशा भरती हो।। अपने कामों से मेहनत का, पथ हमको दिखलाती हो।। जीवन श्रम के लिए बना है, सीख यही सिखलाती हो। (चित्र गूगल सर्च से साभार) |
09 फ़रवरी, 2010
“तार वीणा के बजे बिन साज सुन्दर।” (मयंक)
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