मेरी बालकृति "नन्हें सुमन" से
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एक बालकविता
"तितली रानी"
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मन को बहुत लुभाने वाली,
तितली रानी कितनी सुन्दर।
भरा हुआ इसके पंखों में,
रंगों का है एक समन्दर।।
उपवन में मंडराती रहती,
फूलों का रस पी जाती है।
अपना मोहक रूप दिखाने,
यह मेरे घर भी आती है।।
भोली-भाली और सलोनी,
यह जब लगती है सुस्ताने।
इसे देख कर एक छिपकली,
आ जाती है इसको खाने।।
आहट पाते ही यह उड़ कर,
बैठ गयी चौखट के ऊपर।
मेरा मन भी ललचाया है,
मैं भी देखूँ इसको छूकर।।
इसके रंग-बिरंगे कपड़े,
होली की हैं याद दिलाते।
सजी धजी दुल्हन को पाकर,
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30 जुलाई, 2013
"तितली रानी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक.)
25 जुलाई, 2013
"भगवान एक है" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
मेरी बालकृति "नन्हें सुमन" से
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एक बालकविता
"भगवान एक है"
मन्दिर, मस्जिद और
गुरूद्वारे।
भक्तों
को लगते हैं प्यारे।।
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हिन्दू
मन्दिर में हैं जाते।
देवताओं
को शीश नवाते।।
ईसाई
गिरजाघर जाते।
दीन-दलित
को गले लगाते।।
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अल्लाह
का फरमान जहाँ है।
मुस्लिम
का कुर-आन वहाँ है।।
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जहाँ
इमाम नमाज पढ़ाता।
मस्जिद
उसे पुकारा जाता।।
सिक्खों
को प्यारे गुरूद्वारे,
मत्था
वहाँ टिकाते सारे।।
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राहें
सबकी अलग-अलग हैं।
पर
सबके अरमान नेक है।
नाम
अलग हैं, पन्थ भिन्न हैं।
पर
जग में भगवान एक है।।
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21 जुलाई, 2013
"नन्हें सुमन की पहली रचना" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मेरी बालकृति "नन्हें सुमन"
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की पहली रचना
वन्दना के रूप में
तान वीणा की सुनाओ कर रहे हम कामना।
माँ करो स्वीकार सुमनों की प्रबल
आराधना।।
अब ध्ररा पर ज्ञान की गंगा बहाओ,
तम मिटाकर सत्य के पथ को दिखाओ,
लक्ष्य में बाधक बना अज्ञान का जंगल
घना।
माँ करो स्वीकार सुमनों की प्रबल
आराधना।।
बेसुरे से राग में, अनुराग
भर दो,
फँस गये हैं हम भँवर में, पार कर
दो,
शारदे माँ कुमति हरकर सबको मेधावी बना।
माँ करो स्वीकार सुमनों की प्रबल
आराधना।।
वन्दना है आपसे, रसना में
रस की धार दो,
हम निपट अज्ञानियों को मातु निज आधार दो,
माँ हमें वरदान दो, होवें
सफल सब साधना।
माँ करो स्वीकार सुमनों की प्रबल
आराधना।।
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17 जुलाई, 2013
"‘नन्हे सुमन’ में प्रकाशित रचनाओं का शुभारम्भ" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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