फोटो फीचर
बच्चों तुम धोखा मत खाना!
कमल नहीं इनको बतलाना!!
शाम ढली तो ये ऐसे थे।
दोनों बन्द कली जैसे थे।।
जैसे-जैसे हुआ अंधेरा।
खुलता गया कली का चेहरा।।
बढ़ती रही सरल मुस्कानें।
रूप अनोखा लगीं दिखाने।।
अब पंखुड़ियाँ थीं फैलाई।
देख कुमुदिनी थी शर्मायी।
दोनों ने जब नज़र मिलाई।
अपनी मोहक छवि दिखलाई।।
अन्धकार अब था गहराया।
कुमुद खुशी से था लहराया।।
एक रूप है एक रंग है!
कमल-कुमुद के भिन्न ढंग हैं।।
कमल हमेशा दिन में खिलता।
कुमुद रात में हँसता मिलता।।