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24 अप्रैल, 2011

"देशी फ्रिज होती सुखदायी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

सुराही
पानी को ठण्डा रखती है,
मिट्टी से है बनी सुराही।
बिजली के बिन चलती जाती,
देशी फ्रिज होती सुखदायी।।

छोटी-बड़ी और दरम्यानी,
सजी हुई हैं सड़क किनारे।
शीतल जल यदि पीना चाहो,
ले जाओ सस्ते में प्यारे।।

इसमें भरा हुआ सादा जल,
अमृत जैसा गुणकारी है।
प्यास सभी की हर लेता है,
निकट न आती बीमारी है।।

अगर कभी बाहर हो जाना,
साथ सुराही लेकर जाना।
घर में भी औ' दफ्तर में भी,
इसके जल से प्यास बुझाना।।

18 अप्रैल, 2011

"बालक हैं ये प्यारे-प्यारे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ' मयंक')

आँगन बाड़ी के हैं तारे।
बालक हैं  ये प्यारे-प्यारे।।
आओ इनका मान करें हम।
सुमनों का सम्मान करें हम।।
बाल दिवस हम आज मनाएँ।
नेहरू जी को शीश नवाएँ।।
जो थे भारत भाग्य विधाता।
बच्चों से रखते थे नाता।।
सबसे अच्छे जग से न्यारे।
बच्चों के हैं चाचा प्यारे।।

15 अप्रैल, 2011

"खेतों में शहतूत लगाओ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")


कितना सुन्दर और सजीला।
खट्टा-मीठा और रसीला।।

हरे-सफेद, बैंगनी-काले।
छोटे-लम्बे और निराले।।

शीतलता को देने वाले।
हैं शहतूत बहुत गुण वाले।।
पारा जब दिन का बढ़ जाता।
तब शहतूत बहुत मन भाता।

इसका वृक्ष बहुत उपयोगी।
ठण्डी छाया बहुत निरोगी।।

टहनी-डण्ठल सब हैं बढ़िया।
इनसे बनती हैं टोकरियाँ।।

रेशम के कीड़ों का पालन।
निर्धन को देता है यह धन।।
आँगन-बगिया में उपजाओ।
खेतों में शहतूत लगाओ।।

13 अप्रैल, 2011

"खून चूसता है जी भर कर" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

झूम-झूमकर मच्छर आते।
कानों में गुञ्जार सुनाते।।
नाम ईश का जपते-जपते।
सुबह-शाम को खूब निकलते।।

बैठा एक हमारे सिर पर।
खून चूसता है जी भर कर।।
नहीं यह बिल्कुल भी डरता।
लाल रक्त से टंकी भरता।।

कैसे मीठी निंदिया आये?
मक्खी-मच्छर नहीं सतायें।
मच्छरदानी को अपनाओ।
चैन-अमन से सोते जाओ।।

09 अप्रैल, 2011

"पतझड़ आज बसन्त हो गया" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")


एक साल के बाद हमारा,
लैपटॉप जीवन्त हो गया।
एकाकीपन की घड़ियों का,
अब लगता है अन्त हो गया।।
यह प्यारा सा संगी-साथी,
मेरा साथ निभाता है।
नये-नये चिट्ठाकारों से,
खुश होकर मिलवाता है।।
कलियुग की जीवन धारा में,
यह ज्ञानी और सन्त हो गया।
एकाकीपन की घड़ियों का,
अब लगता है अन्त हो गया।।
बहुत दिनों बीमार रहा यह,
दिल्ली जाकर स्वस्थ हो गया।
नई कुंजियों को पा करके,
पहले जैसा मस्त हो गया।
संजीवनी चबा कर फिर से,
बलशाली हनुमन्त हो गया।
एकाकीपन की घड़ियों का,
अब लगता है अन्त हो गया।।
बहुत दिनों के बाद तुम्हारा,
चित्र आज मैं खीँच रहा हूँ।
ब्लॉगिंग की केसर क्यारी को,
मित्र तुम्हीं से सींच रहा हूँ।
तुमको वापिस पा जाने से,
पतझड़ आज बसन्त हो गया।
एकाकीपन की घड़ियों का,
अब लगता है अन्त हो गया।।

05 अप्रैल, 2011

तरबूज सुहाना

जब गरमी की ऋतु आती है!
लू तन-मन को झुलसाती है!!


तब आता तरबूज सुहाना!
ठण्डक देता इसको खाना!!

watermelons-5556
यह बाजारों में बिकते हैं!
फुटबॉलों जैसे दिखते हैं!!


एक रोज मन में यह ठाना!
देखें इनका ठौर-ठिकाना!!


पहुँचे जब हम नदी किनारे!
बेलों पर थे अजब नजारे!!


कुछ छोटे कुछ बहुत बड़े थे!
जहाँ-तहाँ तरबूज पड़े थे!!

Watermelon field prachi

इनमें से था एक उठाया!
बैठ खेत में इसको खाया!!

Watermelon

इसका गूदा लाल-लाल था!
ठण्डे रस का भरा माल था!!