शीतल पवन चली सुखदायी। रिम-झिम, रिम-झिम वर्षा आई। भीग रहे हैं पेड़ों के तन, भीग रहे हैं आँगन उपवन, हरियाली सबके मन भाई। रिम-झिम, रिम-झिम वर्षा आई।। मेंढक टर्र-टर्र चिल्लाते, झींगुर मस्ती में हैं गाते, आमों की बहार ले आई। रिम-झिम, रिम-झिम वर्षा आई।। आसमान में बिजली कड़की, डर से सहमें लडका-लड़की, बन्दर जी की शामत आई। रिम-झिम, रिम-झिम वर्षा आई।। कहीं छाँव है, कहीं धूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, धरती ने है प्यास बुझाई। रिम-झिम, रिम-झिम वर्षा आई।। कल विद्यालय भी जाना है, होम-वर्क भी जँचवाना है, मुन्नी कॉपी लेकर आयी। रिम-झिम, रिम-झिम वर्षा आई।। |
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21 दिसंबर, 2011
"वर्षा आई" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
29 नवंबर, 2011
‘‘तीखी-मिर्च सदा कम खाओ’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
तीखी-तीखी और चर्परी।
हरी मिर्च थाली में पसरी।।
तोते इसे प्यार से खाते।
मिर्च देखकर खुश हो जाते।।
सब्ज़ी का यह स्वाद बढ़ाती।
किन्तु पेट में जलन मचाती।।
जो ज्यादा मिर्ची खाते हैं।
सुबह-सुबह वो पछताते हैं।।
दूध-दही बल देने वाले।
रोग लगाते, मिर्च-मसाले।।
शाक-दाल को घर में लाना।
थोड़ी मिर्ची डाल पकाना।।
सदा सुखी जीवन अपनाओ।
तीखी-मिर्च सदा कम खाओ।।
हरी मिर्च थाली में पसरी।।
तोते इसे प्यार से खाते।
मिर्च देखकर खुश हो जाते।।
सब्ज़ी का यह स्वाद बढ़ाती।
किन्तु पेट में जलन मचाती।।
जो ज्यादा मिर्ची खाते हैं।
सुबह-सुबह वो पछताते हैं।।
दूध-दही बल देने वाले।
रोग लगाते, मिर्च-मसाले।।
शाक-दाल को घर में लाना।
थोड़ी मिर्ची डाल पकाना।।
सदा सुखी जीवन अपनाओ।
तीखी-मिर्च सदा कम खाओ।।
22 नवंबर, 2011
18 नवंबर, 2011
03 नवंबर, 2011
23 अक्टूबर, 2011
14 अक्टूबर, 2011
"मकड़ी-मकड़े" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
मित्रों! आज प्रांजल-प्राची ने माँग रखी कि
बाबा जी मकड़ी पर लिखिए न!
उन्हीं की माँगपर प्रस्तुत है यह बालकविता!
उन्हीं की माँगपर प्रस्तुत है यह बालकविता!
कीट-पतंगे, मच्छर-मक्खी,
कच्चे जालों में जकड़े।
उनको ही तो कहती दुनिया,
आठ टाँग के मकड़ी-मकड़े।।
झाड़ी और दीवारों पर।
और दौड़ते रहते हैं ये,
इन महीन से तारों पर।।
कभी यह ऊपर को चढ़ते,
कभी फिसल नीचे आ जाते।
किन्तु निरन्तर कोशिश करते,
श्रम से कभी नहीं घबड़ाते।।
अपने पथ को निर्मित करते,
देखो इन यजमानों को।
करते रहते हैं ये प्रेरित,
जग में सब इन्सानों को।
एक बार हो गये विफल तो,
अगली बार सफल होंगे।
यदि होंगे मजबूत इरादे,
कभी नहीं असफल होंगे।।
12 अक्टूबर, 2011
"ककड़ी मोह रही सबका मन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
लम्बी-लम्बी हरी मुलायम।
ककड़ी मोह रही सबका मन।।
कुछ होती हल्के रंगों की,
कुछ होती हैं बहुरंगी सी,
नदी किनारे पालेजों में,
ककड़ी लदी हुईं बेलों पर,
ककड़ी बिकतीं हैं मेलों में,
हाट-गाँव में, फड़-ठेलों पर,
यह रोगों को दूर भगाती,
यह मौसम का फल है अनुपम।
ककड़ी मोह रही सबका मन।।
ककड़ी लदी हुईं बेलों पर,
ककड़ी बिकतीं हैं मेलों में,
हाट-गाँव में, फड़-ठेलों पर,
यह रोगों को दूर भगाती,
यह मौसम का फल है अनुपम।
ककड़ी मोह रही सबका मन।।
आता है जब मई महीना,
गर्म-गर्म जब लू चलती हैं,
तापमान दिन का बढ़ जाता,
गर्मी से धरती जलती है,
ऐसे मौसम में सबका ही,
ककड़ी खाने को करता मन।
गर्म-गर्म जब लू चलती हैं,
तापमान दिन का बढ़ जाता,
गर्मी से धरती जलती है,
ऐसे मौसम में सबका ही,
ककड़ी खाने को करता मन।
30 सितंबर, 2011
"दादी जियो हजारों साल" (प्रांजल-प्राची)
हम बच्चों के जन्मदिवस को, धूम-धाम से आप मनातीं। रंग-बिरंगे गुब्बारों से, पूरे घर को आप सजातीं।। आज मिला हमको अवसर ये, हम भी तो कुछ कर दिखलाएँ। दादी जी के जन्मदिवस को, साथ हर्ष के आज मनाएँ।। अपने नन्हें हाथों से हम, तुमको देंगे कुछ उपहार। बदले में हम माँग रहे हैं, दादी से प्यार अपार।। अपने प्यार भरे आँचल से, दिया हमें है साज-सम्भाल। यही कामना हम बच्चों की दादी जियो हजारों साल।। |
23 सितंबर, 2011
" बिजली कड़की पानी आया" ( डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
उमड़-घुमड़ कर बादल आये।
घटाटोप अँधियारा लाये।।
काँव-काँव कौआ चिल्लाया।
लू-गरमी का हुआ सफाया।।
मोटी जल की बूँदें आईं।
आँधी-ओले संग में लाईं।।
धरती का सन्ताप मिटाया।
बिजली कड़की पानी आया।।
लगता है हमको अब ऐसा।
मई बना चौमासा जैसा।।

पेड़ों पर लीची हैं झूली।
बगिया में अमिया भी फूली।।

आम और लीची घर लाओ।
जमकर खाओ, मौज मनाओ।।
19 सितंबर, 2011
"यह है अपना सच्चा भारत" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
♥ यह है अपना सच्चा भारत ♥

सुन्दर-सुन्दर खेत हमारे।
बाग-बगीचे प्यारे-प्यारे।।
पर्वत की है छटा निराली।
चारों ओर बिछी हरियाली।।

सूरज किरणें फैलाता है।
छटा अनोखी बिखराता है।।
तम हट जाता, जग जगजाता।
जन दिनचर्या में लग जाता।।
चहक उठे हैं घर-चौबारे।
महक उठे कच्चे-गलियारे।।

गइया जंगल चरने जाती।
हरी घास मन को ललचाती।।
नहीं बनावट, नहीं प्रदूषण।
यहाँ सरलता है आभूषण।।

खड़ी हुई मजबूत इमारत।
यह है अपना सच्चा भारत।।
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