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31 मार्च, 2010

‘‘भँवरा’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)


गुन-गुन करता भँवरा आया।
कलियों फूलों पर मंडराया।।


यह गुंजन करता उपवन में।
गीत सुनाता है गुंजन में।।


कितना काला इसका तन है।
किन्तु बड़ा ही उजला मन है।


जामुन जैसी शोभा न्यारी।
खुशबू इसको लगती प्यारी।।


यह फूलों का रस पीता है।
मीठा रस पीकर जीता है।।


(चित्र गूगल सर्च से साभार)

28 मार्च, 2010

‘‘वफादार है बड़े काम का’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)




यह कुत्ता है बड़ा शिकारी।
बिल्ली का दुश्मन है भारी।।

बन्दर अगर इसे दिख जाता।
भौंक-भौंक कर उसे भगाता।।

उछल-उछल कर दौड़ लगाता।
बॉल पकड़ कर जल्दी लाता।।

यह सीधा-सच्चा लगता है।
बच्चों को अच्छा लगता है।।

धवल दूध सा तन है सारा।
इसका नाम फिरंगी प्यारा।।

आँखें इसकी चमकीली हैं।
भूरी सी हैं और नीली हैं।।

जग जाता है यह आहट से।
साथ-साथ चल पड़ता झट से।।

प्यारा सा पिल्ला ले आना।
सुवह शाम इसको टहलाना।।

नौकर है यह बिना दाम का।
वफादार है बड़े काम का।।

26 मार्च, 2010

"सब्जी-मण्डी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

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देखो-देखो सब्जी-मण्डी,
बिकते आलू,बैंगन,भिण्डी।
कच्चे केले, पक्के केले,
मटर, टमाटर के हैं ठेले।
गोभी,पालक,मिर्च हरी है,
धनिये से टोकरी भरी है।
लौकी, तोरी और परबल हैं,
पीले-पीले सीताफल हैं।
अचरज में है जनता सारी,
सब्जी-मण्डी कितनी प्यारी।

(चित्र गूगल सर्च से साभार)

24 मार्च, 2010

‘‘बस’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)


बस में जाने में मुझको,
आनन्द बहुत आता है।
खिड़की के नजदीक बैठना,
मुझको बहुत सुहाता है।।

(चित्र गूगल सर्च से साभार) 
पहले मैं विद्यालय में,
रिक्शा से आता-जाता था।
रिक्शे-वाले की हालत पर,
तरस मुझे आता था।।


(चित्र गूगल सर्च से साभार)
लेकिन अब विद्यालय में,
इक नयी-नवेली बस आयी।
पीले रंग वाली सुन्दर सी,
गाड़ी बच्चों ने पायी।।


आगे हैं दो काले टायर,

पीछे लगे चार चक्के।
बड़े जोर से हार्न बजाती,
हो जाते हम भौंचक्के।।


पढ़-लिख कर मैं खोलूँगा,
छोटे बच्चों का विद्यालय।
अलख जगाऊँगा शिक्षा की,
पाऊँगा जीवन की लय।।

21 मार्च, 2010

"मेरा विद्यालय" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")


विद्या का भण्डार भरा है जिसमें सारा।
मुझको अपना विद्यालय लगता है प्यारा।।


नित्य नियम से विद्यालय में, मैं पढ़ने को जाता हूँ।
इण्टरवल जब हो जाता मैं टिफन खोल कर खाता हूँ।


खेल-खेल में दीदी जी विज्ञान गणित सिखलाती हैं।
हिन्दी और सामान्य-ज्ञान भी ढंग से हमें पढ़ाती हैं।।


कम्प्यूटर में सर जी हमको रोज लैब ले जाते है।
माउस और कर्सर का हमको सारा भेद बताते हैं।।


कम्प्यूटर में गेम खेलना सबसे ज्यादा भाता है।
इण्टरनेट चलाना भी मुझको थोड़ा सा आता है।।


जिनका घर है दूर वही बालक रिक्शा से आते हैं। 
जिनका घर है बहुत पास वो पैदल-पैदल जाते हैं।।


पढ़-लिख कर मैं अच्छे-अच्छे काम करूँगा।
दुनिया में अपने भारत का सबसे ऊँचा नाम करूँगा।

20 मार्च, 2010

‘‘टेली-विजन’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)


मेरा टी0वी0 है अनमोल।
खोल रहा दुनिया की पोल।।


इसमें चैनल एक हजार।
इसके बिन जीवन बेकार।।


कितना प्यारा और सलोना।
बच्चों का ये एक खिलौना।।


समाचार इसमें हैं आते।
कार्टून हैं खूब हँसाते।।


गीत और संगीत सुनाता।
पल-पल की घटना बतलाता।।

बस रिमोट का बटन दबाओ।
मनचाहा चैनल पा जाओ।।



यह सबके मन को भाता है।
क्रि-केट, कुश्ती दिखलाता है।।


नृत्य सिखाता, मन बहलाता।
नये-नये पकवान बताता।।

नई-नई कारों को देखो।
जगमग त्योहारों को देखो।।

नये-नये देखो परिधान।
टेली-विजन बहुत महान।।
(रिमोट, कार और त्योहार के चित्र गूगल सर्च से साभार)

19 मार्च, 2010

‘‘रंग-बिरंगी तितली आई’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)


तितली आई! तितली आई!!


रंग-बिरंगी, तितली आई।।



कितने सुन्दर पंख तुम्हारे।


आँखों को लगते हैं प्यारे।।



फूलों पर खुश हो मँडलाती।


अपनी धुन में हो इठलाती।।



जब आती बरसात सुहानी।


पुरवा चलती है मस्तानी।।



तब तुम अपनी चाल दिखाती।


लहरा कर उड़ती बलखाती।।



पर जल्दी ही थक जाती हो।


दीवारों पर सुस्ताती हो।।



बच्चों के मन को भाती हो।


इसीलिए पकड़ी जाती हो।।



(चित्र गूगल सर्च से साभार)

18 मार्च, 2010

‘‘मेरा बस्ता कितना भारी’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)


मेरा बस्ता कितना भारी।
बोझ उठाना है लाचारी।।


मेरा तो नन्हा सा मन है।
छोटी बुद्धि दुर्बल तन है।।


पढ़नी पड़ती सारी पुस्तक।
थक जाता है मेरा मस्तक।।


रोज-रोज विद्यालय जाना।
बड़ा कठिन है भार उठाना।।

कम्प्यूटर का युग अब आया।
इसमें सारा ज्ञान समाया।।


मोटी पोथी सभी हटा दो।
बस्ते का अब भार घटा दो।।


थोड़ी कॉपी, पेन चाहिए।
हमको मन में चैन चाहिए।।


कम्प्यूटर जी पाठ पढ़ायें।
हम बच्चों का ज्ञान बढ़ाये।


सस्ते में चल जाये काम।
छोटा बस्ता हो आराम।।


(चित्र गूगल सर्च से साभार)

17 मार्च, 2010

‘‘प्यारी प्राची’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

 
इतनी जल्दी क्या है बिटिया,
सिर पर पल्लू लाने की।
अभी उम्र है गुड्डे-गुड़ियों के संग,
समय बिताने की।।
(चित्र गूगल सर्च से साभार)

मम्मी-पापा तुम्हें देख कर,
मन ही मन हर्षाते हैं।
जब वो नन्ही सी बेटी की,
छवि आखों में पाते है।।


जब आयेगा समय सुहाना,
देंगे हम उपहार तुम्हें।
तन मन धन से सब सौगातें,
देंगे बारम्बार तुम्हें।।

दादी-बाबा की प्यारी,
तुम सबकी राजदुलारी हो।
घर आंगन की बगिया की,
तुम मनमोहक फुलवारी हो।।

सबकी आँखों में बसती हो,
इस घर की तुम दुनिया हो।
प्राची तुम हो बड़ी सलोनी,
इक प्यारी सी मुनिया हो।।

"मच्छर-दानी" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)


जिसमें नींद चैन की आती।
वो मच्छर-दानी कहलाती।।

लाल-गुलाबी और हैं धानी।
नीली-पीली बड़ी सुहानी।।

छोटी, बड़ी और दरम्यानी।
कई तरह की मच्छर-दानी।।

इसको खोलो और लगाओ।
बिस्तर पर सुख से सो जाओ।।

जब ठण्डक कम हो जाती है।
गरमी और बारिश आती है।।

तब मच्छर हैं बहुत सताते।
भिन-भिन करके शोर मचाते।।

खून चूस कर दम लेते हैं।
डेंगू-फीवर कर देते हैं।।

मच्छर से छुटकारा पाओ।
मच्छरदानी को अपनाओ।।

16 मार्च, 2010

"कम्प्यूटर" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

मन को करता है मतवाला।
कम्प्यूटर है बहुत निराला।।


यह तो एक अनिवार्य भाग है।
कम्प्यूटर का यह दिमाग है।।
चलते इससे हैं प्रोग्राम।
सी.पी.यू.है इसका नाम।।

गतिविधियाँ सब दिखलाता है।
यह मॉनीटर कहलाता है।।
सुन्दर रंग हैं न्यारे-न्यारे।
आँखों को लगते हैं प्यारे।।

इसमें कुंजी बहुत समाई ।
टाइप इनसे करना भाई।।
सोच-सोच कर बटन दबाना।
हिन्दी-इंग्लिश लिखते जाना।।

यह चूहा है सिर्फ नाम का।
माउस होता बहुत काम का।।
यह कमाण्ड का ऑडीटर है।
इसके वश में कम्प्यूटर है।।

कविता लेख लिखो जी भर के।
तुरन्त छाप लो इस प्रिण्टर से।।


नवयुग का कहलाता ट्यूटर।
बहुत काम का है कम्प्यूटर।।

15 मार्च, 2010

‘‘गुब्बारे’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")




बच्चों को लगते जो प्यारे।

वो कहलाते हैं गुब्बारे।।




गलियों, बाजारों, ठेलों में।
गुब्बारे बिकते मेलों में।।

काले, लाल, बैंगनी, पीले।

कुछ हैं हरे, बसन्ती, नीले।।



पापा थैली भर कर लाते।

जन्म-दिवस पर इन्हें सजाते।।



गलियों, बाजारों, ठेलों में।

गुब्बारे बिकते मेलों में।।



फूँक मार कर इन्हें फुलाओ।

हाथों में ले इन्हें झुलाओ।।

सजे हुए हैं कुछ दुकान में।

कुछ उड़ते हैं आसमान में।।



मोहक छवि लगती है प्यारी।

गुब्बारों की महिमा न्यारी।।

(चित्र गूगल सर्च से साभार)

13 मार्च, 2010

‘‘जंगल और जीव’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)


रहता वन में और हमारे,
संग-साथ भी रहता है।
यह गजराज तस्करों के,
जालिम-जुल्मों को सहता है।।


समझदार है, सीधा भी है,
काम हमारे आता है।

सरकस के कोड़े खाकर,
 नूतन करतब दिखलाता है।।
मूक प्राणियों पर हमको तो,
तरस बहुत ही आता है।
इनकी देख दुर्दशा अपना,
सीना फटता जाता है।।

वन्य जीव जितने भी हैं,
सबका अस्तित्व बचाना है,
जंगल के जीवों के ऊपर,
दया हमें दिखलाना है।
वृक्ष अमूल्य धरोहर हैं,
इनकी रक्षा करना होगा।
जीवन जीने की खातिर,
वन को जीवित रखना होगा।

तनिक-क्षणिक लालच को,
अपने मन से दूर भगाना है।
धरती का सौन्दर्य धरा पर,
हमको वापिस लाना है।।

(सभी चित्र गूगल सर्च से साभार)

"गैस सिलेण्डर" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')


गैस सिलेण्डर कितना प्यारा।


मम्मी की आँखों का तारा।।



रेगूलेटर अच्छा लाना।


सही ढंग से इसे लगाना।।



गैस सिलेण्डर है वरदान।


यह रसोई-घर की है शान।।



दूघ पकाओ, चाय बनाओ।


मनचाहे पकवान बनाओ।।



बिजली अगर नही है घर में।


यह प्रकाश देता पल भर में।।



बाथरूम में इसे लगाओ।


गर्म-गर्म पानी से न्हाओ।।



बीत गया है वक्त पुराना।


अब आया है नया जमाना।।



जंगल से लकड़ी मत लाना।


बड़ा सहज है गैस जलाना।।



किन्तु सुरक्षा को अपनाना।


इसे कार में नही लगाना।


(चित्र गूगल सर्च से साभार)

12 मार्च, 2010

‘‘फ्रिज’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

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बाबा जी का रेफ्रीजेटर,
लाल रंग का बड़ा सलोना।

किन्तु हमारा है छोटा सा,
लगता जैसे एक खिलौना।।


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सब्जी, दूध, दही, मक्खन,
फ्रिज में आरक्षित रहता।

पानी रखो बर्फ जमाओ,
मैं दादी-अम्माँ से कहता।।


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ठण्डी-ठण्डी आइस-क्रीम भी,


इसमें है जम जाती।


गर्मी के मौसम में कुल्फी,


बच्चों के मन को भाती।।
आम, सेब, अंगूर आदि फल,
फ्रिज में रखे जाते हैं।

ठण्डे पानी की बोतल,
हम इसमें से ही लाते हैं।।

इस अल्मारी को लाने की,
इच्छा है जन-जन में।

फ्रिज को पाने की जिज्ञासा,
हर नारी के मन में।।


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घड़े और मटकी का इसने,
तो कर दिया सफाया है।

समय पुराना बीत गया,
अब नया जमाना आया है।।

08 मार्च, 2010

‘‘पतंग का खेल’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

 
लाल और काले रंग वाली, 
मेरी पतंग बड़ी मतवाली।
मैं जब विद्यालय से आता,
खाना खा झट छत पर जाता।
 
पतंग उड़ाना मुझको भाता, 
बड़े चाव से पेंच लड़ाता।
पापा-मम्मी मुझे रोकते,
बात-बात पर मुझे टोकते।
लेकिन मैं था नही मानता,
इसका नही परिणाम जानता।
वही हुआ था, जिसका डर था,
अब मैं काँप रहा थर-थर था।
लेकिन मैं था ऐसा हीरो,
सब विषयों लाया जीरो।
अब नही खेलूँगा यह खेल,
कभी नही हूँगा मैं फेल।
आसमान में उड़ने वाली,
जो करती थी सैर निराली।
मैंने उसे फाड़ डाला है,
छत पर लगा दिया ताला है।
मित्रों! मेरी बात मान लो,
अपने मन में आज ठान लो।
पुस्तक लेकर ज्ञान बढ़ाओ।
थोड़ा-थोड़ा पतंग उड़ाओ।।
(चित्र गूगल खोज से साभार)

07 मार्च, 2010

“देखो एक मदारी आया।” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)


देखो एक मदारी आया।
 अपने संग लाठी भी लाया।।
डम-डम डमरू बजा रहा है।
भालू, बन्दर नचा रहा है।।
म्बे काले बालों वाला।
भालू का अन्दाज निराला।।

खेल अनोखे दिखलाता है।
बच्चों के मन को भाता है।।
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वानर है कितना शैतान।
पकड़ रहा भालू के कान।।
यह अपनी धुन में ऐँठा है।
भालू के ऊपर बैठा है।।
लिए कटोरा पेट दिखाता।
माँग-माँग कर पैसे लाता।।

(चित्र गूगल सर्च से साभार)

06 मार्च, 2010

"टोपी" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

गंजापन ढकने को टोपी, 
मेरे सिर पर रहती है।
ठिठुरन से रक्षा करती हूँ , 

बार-बार यह कहती है।।
 
देखो अपनी गाँधी टोपी,
सारे जग से न्यारी है।
आन-बान भारत की है ये,

हमको लगती प्यारी है।।

लालबहादुर और जवाहर जी ने,
इसको धार लिया।
भारत का सिंहासन इनको,

टोपी ने उपहार दिया।।


टोपी पहिन सुभाषचन्द्र,
लाखों में पहचाना जाता।
टोपी वाले नेता का कद,

ऊँचा है माना जाता।।


लाखों में पहचाना जाता।
टोपी वाले नेता का कद,

ऊँचा है माना जाता।।
खादी की टोपी, धोती,
कुर्ते, की शान निराली है।
बिना पढ़े ही ये पण्डित,

का मान दिलाने वाली है।।
टोपी पहन सलामी,
अपने झण्डे को हम देते हैं।
राष्ट्र हेतु मर-मिटने का प्रण,

हम खुश होकर लेते है।।
(चित्र गूगल से साभार)