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24 अगस्त, 2011

"थाली के बैंगन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

गोल-गोल हैं, रंग बैंगनी,
बैंगन नाम हमारा है।
सुन्दर-सुन्दर रूप हमारा,
सबको लगता प्यारा है।।

कुछ होते हैं लम्बे-लम्बे,
कुछ होते हैं श्वेत-धवल।
कुछ होते हैं टेढ़े-मेढ़े,
कुछ होते हैं बहुत सरल।

सभी जगह पर थाली के 
बैंगन ही बिकने आते है।
चापलूस लोगों से तो,
सब ही धोखा खा जाते हैं।

इनका भरता बना-बनाकर,
चटकारे ले-लेकर खाना।
किन्तु कभी अपने जीवन में,
खुदगर्ज़ों को मुँह न लगाना।।
(कुछ चित्र गूगल छवियों से साभार)

14 अगस्त, 2011

"अल्मौड़ा की बॉलमिठाई" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

मेरे पापा गये हुए थे,
परसों नैनीताल।
मेरे लिए वहाँ से लाए,
वो यह मीठा माल।।

खोए से यह बनी हुई है,
जो टॉफी का स्वाद जगाती।
मीठी-मीठी बॉल लगी हैं,
मुझको बहुत पसंद है आती।।

कभी पहाड़ों पर जाओ तो,
इसको भी ले आना भाई।
भूल न जाना खास चीज है,
अल्मौड़ा की बॉलमिठाई।।

रक्षाबन्धन के अवसर पर,
यह मेरे भइया ने खाई।
उसके बाद बहुत खुश होकर,
मुझसे राखी भी बंधवाई।।