यह ब्लॉग खोजें

21 दिसंबर, 2011

"वर्षा आई" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")



शीतल पवन चली सुखदायी।
रिम-झिमरिम-झिम वर्षा आई।
भीग रहे हैं पेड़ों के तन,
भीग रहे हैं आँगन उपवन,
हरियाली सबके मन भाई।
रिम-झिमरिम-झिम वर्षा आई।।

मेंढक टर्र-टर्र चिल्लाते,
झींगुर मस्ती में हैं गाते,
आमों की बहार ले आई।
रिम-झिमरिम-झिम वर्षा आई।।

आसमान में बिजली कड़की,
डर से सहमें लडका-लड़की,
बन्दर जी की शामत आई।
रिम-झिमरिम-झिम वर्षा आई।।

कहीं छाँव हैकहीं धूप है,
इन्द्रधनुष कितना अनूप है,
धरती ने है प्यास बुझाई।
रिम-झिमरिम-झिम वर्षा आई।।

कल विद्यालय भी जाना है,
होम-वर्क भी जँचवाना है,
मुन्नी कॉपी लेकर आयी।
रिम-झिमरिम-झिम वर्षा आई।।