हम प्रसून हैं अपने मन के गन्घ भरे हम सुमन चमन के। हम प्रसून हैं अपने मन के।। आँगन में खिलते-मुस्काते, देशभक्ति की अलख जगाते, हम हैं कर्णधार उपवन के। हम प्रसून हैं अपने मन के।। जो दुनिया में सबसे न्यारी, जन्मभूमि वो हमको प्यारी, उगते रवि हम नीलगगन के। हम प्रसून हैं अपने मन के।। ऊँचे पर्वत और समन्दर, रत्न भरे हैं जिनके अन्दर, पाठ पढ़ाते जो जीवन के। हम प्रसून हैं अपने मन के।। हिन्दू-मुस्लिम-ईसाई हैं, आपस में भाई-भाई हैं, इक माला के हम हैं मनके। हम प्रसून हैं अपने मन के।। |
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10 फ़रवरी, 2012
"हम प्रसून हैं अपने मन के" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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