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28 जुलाई, 2011
15 जुलाई, 2011
12 जुलाई, 2011
"प्लम" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
गया आम का मौसम,
प्लम बाजारों में अब छाया।
इनको देख-देख कर देखो,
सबका मन ललचाया।।
लाल-लाल हैं जितने पोलम,
वो हैं खट्टे-मीठे,
लेकिन जो महरून रंग के,
वो लगते हैं मीठे,
पर्वत से शृंगार उतर कर,
मैदानों में आया।
अल्मौड़ा, चौखुटिया,
नैनीताल और चम्पावत,
प्लम के पेड़ों के बागीचे,
फैले हैं बहुतायत,
हरे-भरे इन वृक्षों ने है,
मन को बहुत लुभाया।
मार शीत की झेल-झेल,
शीतल फल हुए रसीले,
बारिश का पानी पीकर,
हो जाते नीले-पीले,
बच्चों और बड़ों ने इनको
बहुत चाव से खाया।
04 जुलाई, 2011
"मीठे होते आम डाल के" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
आम पेड़ पर लटक रहे हैं।
पक जाने पर टपक रहे हैं।।
हरे वही हैं जो कच्चे हैं।
जो पीले हैं वो पक्के हैं।।
इनमें था जो सबसे तगड़ा।
उसे हाथ में मैंने पकड़ा।।
अपनी बगिया गदराई है
आमों की बहार आई है।
मीठे होते आम डाल के।
बासी होते आम पाल के।।
प्राची खुश होकर के बोली।
बाबा जी अब भर लो झोली।।
चूस रहे खुश होकर बच्चे।
आम डाल के लगते अच्छे।।
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