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04 जनवरी, 2011

"मेरी डॉल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

मम्मी देखो मेरी डॉल।
खेल रही है यह तो बॉल।।

पढ़ना-लिखना इसे न आता।
खेल-खेलना बहुत सुहाता।।

कॉपी-पुस्तक इसे दिलाना।
विद्यालय में नाम लिखाना।।

रोज सवेरे मैं गुड़िया को,
ए.बी.सी.डी. सिखलाऊँगी।
अपने साथ इसे भी मैं तो,
विद्यालय में ले जाऊँगी।।
चित्रांकन - कु. प्राची

3 टिप्‍पणियां:

  1. उम्र के जिस पड़ाव पर लोग भारी भरकम शब्दों वाली कृतियों के साथ उस्तादी वाले जलवे दिखाते नज़र आते हैं, ऐसे में आपके द्वारा सरलतम शब्दों के साथ, जन-साधारण से जुड़ी प्रस्‍तुतियाँ मन को मोहित करती हैं मान्यवर| जय हो|

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